मसअला 668. जिसका दायित्व तयम्मुम है अगर वह किसी कार्य के लिए तयम्मुम करे तो जब तक उसका तयम्मुम और कारण बाक़ी है वह उन सारे कार्यों को कर सकता है जिन के लिए वज़ू या ग़ुस्ल की शर्त है, यहा तक कि अगर तयम्मुम को समय के कम होने के कारण से किया है तो क़ुरआन के लिखे का छूना आदि सब उसके लिए जाएज़ है।
मसअला 669. जिन नमाज़ों को तयम्मुम से पढ़ा गया हो उनकी क़ज़ा करने की आवश्यकता नही है और न ही दोबारा पढ़ने की, लेकिन कुछ स्थानो पर एहतियाते मुसतहिब के अनुसार अपनी नमाज़ों को दोबारा पढ़ लेना चाहिए।
1. जहां पानी नही हो या पानी के प्रयोग में कोई रुकावट हो और कोई जानबूझ कर अपने आप को मुजनिब करके तयम्मुम से नमाज़ पढ़े।
2. जहां जानबूझ कर पानी की खोज में नही जाए और अंतिम समय में तयम्मुम से नमाज़ पढ़े और बात में पता चले कि अगर पानी की खोज में जाता तो पानी मिल जाता।
3. जिसको विश्वास या संभावना हो कि पानी नही मिलेगा फिर भी अपने पास का पानी बरबाद करके तयम्मुम से नमाज़ पढ़े।
بسم اللہ الرحمن الرحیم
नमाज़ के अहकाम
नमाज़ इन्सान से ख़ुदा के संपर्क का नाम है, और आत्मा की पवित्रता, दिल की पाकीज़गी, पारसाई की आत्मा की पैदाइश, इन्सान का प्रशिक्षण, गुनाहों से बचने का माध्यम है। सारी इबादतों में सब से महत्व पूर्ण है। रिवायत में है कि अगर नमाज़ स्वीकार हो गई तो दूसरे कार्य भी स्वीकार कर लिए जाएंगे और अगर नमाज़ स्वीकार नही की गई तो दूसरे कार्य भी अस्वीकार कर दिए जाएंगे।
इसी प्रकार रिवायत में है कि पांचों समय की नमाज़ पढ़ने वाले के गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं, जिस प्रकार नहर के पानी से पाँच समय नहाने वाले के शरीर से गंदगी दूर हो जाती है। इसी तर्क के आधार पर क़ुरआन के आयतें, पैग़म्बरे अकरम (स) और अइम्मा मासूमीन (अ) की कथनों में जिस महत्व पूर्ण वस्तु के बारे में सब से अधिक ध्यान दिलाया है वह यही नमाज़ है, इसलिए नमाज़ को छोड़ना सब से बड़ा गुनाह होता है।
इन्सान के लिए बेहतर यह है कि नमाज़ को उसके समय में पढ़ा करे और उसके महत्व को स्वीकार करता हो, और जल्दी जल्दी नमाज़ पढ़ने (जो कि संभव है नमाज़ की ख़राबी का कारण बन जाए) से बचना चाहिए।
जैसा कि हदीस में है कि एक दिन रसूले अकरम (स) ने एक व्यक्ति को मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हुए देखा जो सही प्रकार से रुकूअ और सजदे को नही कर रहा था तो आप (स) ने फ़रमायाः अगर यह व्यक्ति मर जाए और इसकी नमाज़ की यही अवस्था रहे तो यह मेरे धर्म पर नही मरेगा (मेरे धर्म का मानने वाला नही होगा)
और नमाज़ की आत्मा उसको दिल से पढ़ना है, जो वस्तु हवास के बट जाने का कारण बनती है उससे बचना चाहिए, नमाज़ में शब्दों के अर्थ की तरफ़ ध्यान रखना और दिल लगा कर पढ़ना, और यह समझना कि किस से बात कर रहा है, अपने के ख़ुदा की श्रेष्ठता और महानता के सामने बहुत छोटा समझना (यह सारी चीज़ें) बहुत अच्छी है। मासूमीन (अ) की जीवनी में लिखा है कि नमाज़ के समय ख़ुदा का जाप करने में इतना लीन हो जाया करते थे कि अपने आप से भी बेख़बर हो जाया करते थे। हज़रत अली (अ) के पैर में तीर का फल रह गया था उसे नमाज़ के बीच निकाल लिया गया और आपको पता भी नही चला।
नमाज़ की स्वीक्रति और उसकी महानता और पराकाष्ठा के लिए वाजिब शर्तों के अतिरिक्त नीचे बयान किए जाने वाली चीज़ी की रिआयत करना चाहिए।
1. नमाज़ से पहले अपने गुनाहों से तौबा करे।
2. जो गुनाह नमाज़ के ख़ुदा की बारगाह में स्वीकार होने में रुकावट बनते हैं उन से बचे जैसे हसद, घमंड, ग़ीबत, हराम माल खाना नशे वाली चीज़ों का सेवन करना, ख़ुम्स और ज़कात नही देना, बल्कि हर प्रकार के गुनाह से बचना चाहिए।
3. वह कार्य जो दिल के एक स्थान पर होने और नमाज़ के महत्व को कम करते हों उनको नही करना जैसे ऊँघते हुए, पेशाब और पाख़ाना को रोक कर, शोर और हंगामें के बीच नमाज़ नही पढ़े, किसी ऐसे स्थान पर भी नमाज़ नही पढ़े जहां ध्यान बट जाता हो।
4. जिन चीज़ों से नमाज़ का सवाब अधिक हो जाता है उनको अंजाम देना जैसे साफ़ कपड़े पहनना, बालों में कंघी करना, दांत साफ़ करना, ख़ुशबू लगाना, अक़ीक़ की अंगूठी पहनना।