मसअला 239. अगर कोई जानवर इन्सान का पाख़ाना खाने का आदी हो जाए तो उसका पाख़ाना पेशाब अपवित्र है और गोश्त हराम है और अगर उसको पवित्र करना चाहें तो जानवर को इतने दिनों तक पवित्र खाना दिया जाए कि फिर उस को अपवित्र चीज़ खाने वाला जानवर न कहा जाए। ऊँट को चालीस दिन, गाए को तीस दिन, भेड़ को दस दिन, मुरग़ाबी को पाँच दिन, घर की मुर्ग़ी को तीन दिन और दूसरे जानवरों को भी इसी प्रकार पवित्र खाना दिया जाए कि उन को अपवित्र चीज़ खाने वाला न कहा जाए तो यही काफ़ी है।
मसअला 240. कभी कभी मुर्ग़ियों के फ़ार्म में जो ख़ून का पॉउडर उनके खाने में मिलाकर दिया जाता है ताकि मुर्ग़े में गोश्त अधिक हो तो ऐसी मुर्ग़ियों का गोश्त और अंडा हराम नही है और उन का पेशाब और पाख़ाना भी अपवित्र नही है लेकिन बेहतर यह है कि ऐसी मुर्ग़ियों, मुर्ग़ों और उन के अंडो को प्रयोग में न लाया जाए।
मसअला 241. अगर कोई जानवर इन्सान के पाख़ाने के अलावा दूसरी अपवित्र चीज़ों को खाए तो उस से उसका पेशाब और पाख़ाना अपवित्र नही होता और न ही उसका गोश्त हराम होता है लेकिन जिस जानवर का खाना सुअर का दूध हो और उसी के कारण वह पला बढ़ा हो तो उसका गोश्त हराम है।