मसअला 609. शरीअत बहुत से मुसतहिब ग़ुस्ल हैं उनमें से कुछ के बारे में नीचे बयान किया जा रहा है।
1. जुमे का ग़ुस्लः यह मुसतहिब ग़ुस्लों में से सब से बड़ा मुसतहिब हैं और इस पर धर्म ने बहुत अधिक ज़ोर दिया है और बेहतर यह है कि यथा संभव इस को छोड़ा नही जाए। इसका समय सुबह की आज़ान से ज़ोहर की आज़ान तक है और अगर किसी कारण ज़ोहर तक ग़ुस्ल नही कर सके तो जुमे को अस्र के समय तक अदा या क़ज़ा की नियत किए बिना कर ले और अगर किसी कारणवश जुमे को ग़स्ल नही कर सके तो सनीचर को सुबह से लेकर मग़रिब तक किसी भी समय उसकी क़ज़ा कर लेना मुसतहिब है, और जिसको इस बात का डर हो कि जुमे के दिन पानी नही मिल सकेगा वह जुमेरात (ब्रहस्पतिवार) को ग़ुस्ल करे।
2. रमज़ान के महीने की रातों के ग़ुस्लः इसका अर्ध यह है क रमज़ान के पवित्र महीने पहली रात और दूसरी तमात ताक़ (वह संख्या जो दो पर नही बटे) जैसे तीसरी और पाँचवी और सातवीं रात का ग़ुस्ल करना मुसतहिब है और इक्कीसवीं की रात से हर रात को ग़ुस्ल करना मुसतहिब है, इन ग़ुस्लों का समय पूरी रात है अगरचे बेहतर यह है कि सूरज के डूबते ही कर ले लेकिन इक्कीसवीं की रात से महीने के अंत तक मग़रिब और इशा के मध्य ग़ुस्ल करे और एहतियात यह है कि इस पवित्र महीने के सारे ग़ुस्लों और आगे बयान किए जाए वाले दूसरे ग़ुस्लों को इस आशा के साथ की ईश्वर स्वीकार करेगा अंजाम दे।
3. ईदैन का ग़ुस्लः ईदुल फ़ित्र और बक्र ईद, इनका समय सुबह की आज़ान से मग़रिब तक है और बेहतर यह है कि ईद की नमाज़ से पहले कर ले।
4. ईदुल फ़ित्र की रात का ग़ुस्लः ईदुल फ़ित्र की राज जो ग़ुस्ल किया जाता है उसका समय मग़रिब को आरम्भ होते ही सुबह की आज़ात तक है और बेहतर यह है कि रात आरम्भ होते ही कर लिया जाए।
5. तरवीया के दिन (ज़िल हिज्जा की आठवी) और अरफ़ा के दिन (नौ ज़िल हिज्जा) का ग़ुस्ल भी मुसतहिब है।
6. रजब की पहली, रजब की पन्दरहवी, सत्ताईस रजब (ईदे मबअस) और रजब की अंतिम को भी ग़ुस्ल मुसतहिब है।
7. ईदे ग़दीर (अठ्ठारह ज़िल हिज्जा) का ग़ुस्ल भी मुसतहिब है।
8. पन्दरह शाबान (इमामे ज़माना (अ) की विलादत का दिन) सत्तरह रबीउल अव्वल (रसूले अकरम (स) की विलादत का दिन) और ईदे नौरोज़ का ग़ुस्ल मुसतहिब है।
9. नए जन्में बच्चे को ग़ुस्ल देना मुसतहिब है।
10. उस औरत का ग़ुस्ल जिसने नामहरम के लिए ख़ुशबू लगाई हो। और उस व्यक्ति का ग़ुस्ल जो नशे की हालत में सो जाए।
11. उस व्यक्ति का ग़ुस्ल जो फांसी पर चढ़े व्यक्ति को देखने के लिए जाए और उसे देख भी ले लेकिन अगर अचानक या विवशता में निगाह पड़ गई हो या गवाही देने के लिए गया है तो उसके लिए ग़ुस्ल मुसतहिब नही है।
12. तौबा का ग़ुस्लः यानि इन्सान जब किसी गुनाह के बाद तौबा करे तो ग़ुस्ल करे।
मसअला 610. पवित्र स्थानों पर जाने के लिए ग़ुस्ल करना मुसतहिब है, उनमें से मक्के मे प्रवेश से पहले या मक्के में प्रवेश के बाद, मस्जिदुल हराम में प्रवेश करने के लिए इसी प्रकार मदीने में प्रवेश के लिए फिर मदीने पहुंच कर रसूले अकरम (स) की मस्जिद में प्रवेश करने के लिए अइम्मा मासूमीन (अ) के रौज़ो में प्रवेश के लिए, और अगर एक ही दिन में कई बार जाए तो एक ही ग़ुस्ल काफ़ी है, अगर कोई चाहता है कि एक ही दिन में मक्के में प्रवेश करके मस्जिदुल हराम में भी जाए या मदीने में प्रवेश करके रसूले अकरम (स) की मस्जिद में जाए तो केवल एक ग़ुस्ल काफ़ी है, इसी प्रकार रसूले अकरम (स) की ज़ियारत के लिए अइम्मा मासूमीन (अ) की ज़ियारत के लिए ग़ुस्ल मुसतहिब है चाहे दूर से ज़ियारत करे या पास से, और आस्था में विश्वास पैदा करने के लिए और यात्रा पर जाने के लिए भी इसी इच्छा और आशा के साथ कि ईश्वर स्वीकार करेगा ग़ुस्ल मुसतहिब है।
मसअला 611. जिस ग़ुस्ल को ख़ुदा के लिए और उसको ख़ुश करने के लिए किया गया है उससे नमाज़ नही पढ़ी जा सकती है बल्कि एहतियात यह है कि वज़ू कर लेना चाहिए लेकिन जिन ग़ुस्लों का मुसतहिब होना यक़ीनी है जैसे जुमे के दिन का ग़ुस्ल उससे नमाज़ पढ़ी जा सकती है।
मसअला 612. अगर किसी पर कुछ मुसतहिब्बी ग़ुस्ल या कुछ वाजिबी ग़ुस्ल हों और कुछ मुसतहिब्बी और वाजिबी दोनों ग़ुस्ल हों तो सब की नियत से एक ग़ुस्ल कर सकता है।
तयम्मुम की जगहें