मसअला 136. किसी चीज़ की अपवित्रता तीन रास्तों से सिद्ध हो सकती है।
1. ख़ुद इन्सान को विश्वास हो जाए यहा पर केवल अनुमान हो काफी नही है। इसलिए सार्वजनिक स्थान पर (जैसे होटल आदि) पर कभी कभी इन्सान को अपवित्र होने का अनुमान होता है फिर भी वहां खाना खाना सही है. लेकिन अगर अपवित्र होने का विश्वास हो जाए तो नही खा सकता है।
2. साहिबुल यदः यानि जिसके अख़्तियार में वह चीज़ है (जैसे मकान का मालिक बेचने वाला, नौकर) किसी चीज़ के अपवित्र होने की पुष्टी करें ।
3. दो आदिल या एक इन्सान उसके अपवित्र होने की गवाही दे।
मसअला 137. अगर कोई चीज़ पवित्र थी फिर शंका हो की अपवित्र हुई कि नही तो पवित्र है और अगर कोई चीज़ पहले अपवित्र थी फिर शंका हो कि पवित्र हुई की नही तो अपवित्र है।
मसअला 138. अगर मालूम हो कि दो बरतन या दो ऐसे कपड़े जो इन्सान इस्तिमाल कर रहा है उनमें से कोई एक अपवित्र है लेकिन यह नही मालूम कि कौन सा अपवित्र है तो दोनो से बचना चाहिए, लेकिन अगर यह मालूम ना हो कि अपना कपड़ा अपवित्र हुआ है या दूसरे का जिसको वह इस्तिमाल नही कर रहा है तो फिर बचना ज़रूरी नही है।
मसअला 139. शंका करने वाले लोगों को पवित्रता और अपवित्रता मे अपने विश्वास पर ध्यान नही देना चाहिए। बल्कि यह देखना चाहिए कि लोग किस जगह पवित्रता और अपवित्रता पर ध्यान देते है उसको भी उसी का पालन करना चाहिए। शंका को छोड़ने का रास्ता यह है कि उस पर ध्यान ना दे।
मसअला 140. पवित्रता और अपवित्रता मे हद से ज़्यादा एहतियात शरीअत की निगाह में अच्छा नही है बल्कि अगर एहतियात की अधिकता शंका का कारण बन जाए तो इश्काल है।
मसअला 141. अगर किसी चीज़ के बारे मे अनुमान हो कि अपवित्र हो गई खोजबीन जरूरी नही है और अगर खोजबीन शंका का कारण बने तो उसमे भी इश्काल है।
मसअला 142. पवित्रता और अपवित्रता से सम्बधित मसाएल के अलावा भी बदन, कपड़े, घर, सवारी, बल्कि पूरे जीवन मे भी सफाई का खयाल रखना मुस्तहिम है, जैसे कि रसूले अकरम (स) इस बात का बहुत खयाल रखते थे।