मसअला 478. वह औरत जिसके पहली बार ख़ून आया हो (मुबतदिया) या जिसकी कोई विषेश आदत नही हो (मुज़्तरेबा) या वह अपनी आदत भूल गई हो (नासिया)इस प्रकार की औरते जब भी इस प्रकार का ख़ून देखें जिस में मासिक धर्म की निशानियां पाई जाती हों तो उनको फ़ौरन ख़ुदा की इबादत छोड़ देनी चाहिए और अगर बात में पता चले कि वह मासिक धर्म नही था तो छोड़ी हुई इबादतों की क़ज़ा करे। लेकिन अगर इस प्रकार का ख़ून आए कि जिसमें मासिक धर्म की निशानियां नही हों तो तब तक इस्तेहाज़ा वाली औरत के मसअलों के अनुसार कार्य करे जब तक स्पष्ट नही हो जाए कि वह मासिक धर्म है लेकिन समय विषेश या समय और दिन विषेश वाली औरत आदत के दिनों में ख़ून आते ही इबादत छोड़ दे।
मसअला 479. जिस औरत की कोई आदत है चाहे वह समय और दिन विषेश की हो या केवल दिन विषेश या केवल समय विषेश की हो, अगर उसको दो महीने तक लगातार अपनी अपनी आदत से अलग ख़ून आए तो उसकी आदत बदल जाएगी और अब यही (नई आदत) उसकी आदत होगी।
मसअला 480. जिस औरत के एक महीने मे केवल एक बार ख़ून आता है वह अगर किसी महीने में दो बार ख़ून देख ले और उसमें मासिक धर्म की निशानियां भी पाई जाती हों, तो बीच के जिन दिनों में पवित्र रही थी अगर वह दस दिन से कम नही हों तो दोनो ख़ूनों को मासिक धर्म माने।
मसअला 481. अगर तीन दिन या उससे अधिक ऐसा ख़ून आए जिसमें मासिक धर्म की निशानियां हों और उसके बाद दस दिन या उससे अधिक ऐसा ख़ून आए जिसमें इस्तेहाज़ा की निशानियां हों और उसके बाद फिर ऐसा ख़ून आए जिसमें मासिक धर्म की निशानियां हों तो इस सारे ख़ून को जिसमें मासिक धर्म की निशानियां पाई जाती हों मासिक धर्म मानना चाहिए।
मसअला 482. अगर औरत दस दिन से पहले पवित्र हो जाए और उसको मालूम हो कि अंदर भी ख़ून नही है तो उसे ग़ुस्ल करके अपनी इबादते करनी चाहिए, चाहे उसे विश्वास हो कि दस दिनों से पहले उसे दोबारा ख़ून आ जाएगा।
मसअला 483. अगर औरत दस दिन से पहले पवित्र हो जाए लेकिन उसे यह शंका हो कि अंदर ख़ून है तो थोड़ी सी रूई अंदर दाख़िल करके देख लेना चाहिए। अगर साफ़ हो तो ग़ुस्ल करे और इबादत शुरू कर दे और अगर साफ़ नही हो चाहे वह ख़ून के पानी से ही गंदी हुई हो तो मासिक धर्म वाली औरत के बारे में पहले जो आदेश बयान किए गए हैं उन के अनुसार कार्य करे।