मुर्दे को छूने का ग़ुस्ल 496 -506

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तौज़ीहुल मसाएल
निफ़ास के अहकाम 484 -495मोहतज़र के अहकाम 507-514
मसअला 496. अगर इन्सान के मृत शरीर को ठंडा होने के बाद और ग़ुस्ल से पहले कोई छुए (यानि उसके शरीर का कोई अंग मुर्दे के शरीर से छू जाए) तो उस पर मुर्दे के छूने का ग़ुस्ल वाजिब हो जाता है चाहे अपने एख़्तियार से छुआ हो, या बिना अख़्तियार के हद तो यह है कि अगर किसी का नाख़ून भी मुर्दे के नाख़ून से छू जाए तो ग़ुस्ल वाजिब है।
मसअला 497. ऐसे मुर्दे को छूने से जिसका शरीर पूरी तरह से ठंडा नही हुआ हो ग़ुस्ल वाजिब नही होता चाहे वह अंग ठंडा हो चुका हो जिसको छुआ है। इसी प्रकार मुर्दे को तीन ग़ुस्ल दिए जाने के बाद छूने से भी ग़ुस्ल वाजिब नही होता।
मसअला 498. अगर अपने बालों को मुर्दे के बदन से छुए या अपने हाथ को मुर्दे के बालों से छुए तो एहतियाते वाजिब है कि ग़ुस्ल करे।
मसअला 499. अगर चार महीने से कम का बच्चा सिक़्त (गिर गया) हो जाए और कोई उसे छू ले तो एहतियाते मुसतहिब के अनुसार ग़ुस्ल करे और अगर चार महीने या उससे अधिक हो चुके हों तो उस पर ग़ुस्ल वाजिब है।
मसअला 500. अगर चार महीने या उससे अधिक का बच्चा मरा हुआ पैदा हो तो एहतियाते वाजिब के अनुसार माँ को मुर्दे के छूने का ग़ुस्ल करना चाहिए।
मसअला 501. अगर माँ के मरने के बाद कोई बच्चा पैदा हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि वह बालिग़ होने के बाद मुर्दे को छूने का ग़ुस्ल करे।
मसअला 502. अगर नाबालिग़ या पागल बच्चा मुर्दे को छुए तो बालिग़ और आक़िल होने के बाद उस पर मुर्दे को छूने का ग़ुस्ल वाजिब है और अगर समझदार बच्चा ग़ुस्ल करे तो उसका ग़ुस्ल सही है।
मसअला 503. अगर किसी जीवित या ऐसे मुर्दे से कि जिसको ग़ुस्ल नही दिया गया है से कोई ऐसा अंग कट जाए जिसमें हड्डी हो, जैसे एक हाथ या उंगली, तो जो भी उसको छुएगा उस पर ग़ुस्ल वाजिब हो जाएगा, लकिन अगर हड्डी नही हो तो ग़ुस्ल वाजिब नही है इसी प्रकार केवल हड्डी या जीवित या मुर्दे का दांत अलग हो जाए तो उसे छूने से ग़ुस्ल वाजिब नही होता।
मसअला 504. मुर्दे का ग़ुस्ल जनाबत के ग़ुस्ल की तरह ही किया जाता है और उसके बाद वज़ू की भी आवश्यकता नही है, अगरचे एहतियाते मुसतहिब यह है वज़ू करे।
मसअला 505. अगर कई मुर्दों को छुए या एक ही मुर्दे को कई बार छुए तो सब के लिए एक ही ग़ुस्ल काफ़ी है।
मसअला 506. जिस पर मुर्दे को छूने का ग़ुस्ल वाजिब हो वह मस्जिद में जा सकता है और सजदे वाले सूरों को पढ़ सकता है, अपनी बीवी से संभोग कर सकता है, परन्तु नमाज़ और तवाफ़ आदि के लिए ग़ुस्ल करना आवश्यक है, यानि पर मुर्दे को छूने का ग़ुस्ल वाजिब है वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने वज़ू नही किया है।
मुर्दो के अहकाम
निफ़ास के अहकाम 484 -495मोहतज़र के अहकाम 507-514
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