देना मुसतहिब है ताकि अतिरिक्त गर्म एवं ख़ाक झड़ जाए। 648-667

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तौज़ीहुल मसाएल
तयम्मुम से पढ़ सकता है। 637-647हो तो वज़ू के बदले तयम्मुम करे। 668-669
मसअला 648. बेहतर है कि गंदी ज़मीनों , गहरी ज़मीनों, सड़कों के किनारे की ज़मीनों नमक वाली ज़मीनों पर (इस शर्त के साथ कि उसपर नमक जम नही गया हो) तयम्मु नही किया जाए, जिस नमक वाली ज़मीन पर नमक जम गया हो उस पर तयम्मुम सही नही है और अगर ख़ाक इस प्रकार गंदी हो कि तयम्मुम से बीमारी का डर हो तो एहतियाते वाजिब के अनुसार तयम्मुम के बिना ही नमाज़ पढ़े और बाद में क़ज़ा करे।
तयम्मुम करने का तरीक़ा और उसके अहकाम
मसअला 649. तयम्मुम करने के लिए पहले नियत करे फिर दोनों हाथों को किसी ऐसी वस्तु पर मारे जिस पर तयम्मुम करना सही हो फिर एहतियाते वाजिब के अनुसार दोनो हथेलियों को पूरे माथे और उसके दोनो तरफ़ (जहा से सर के बाल उगते हैं) भवों तक और नाक के ऊपर तक खीचे और एहतियाते वाजिब है कि दोनो भवों पर भी मसा करे उसके बाद बाएं हाथ की हथेली को दाहिने हाथ के ऊपरी भाग पर फेरे और उसके बाद दाहिने हाथ की हथेली को बाएं हाथ के ऊपरी भाग पर फेरे।
मसअला 650. तयम्मुम चाहे वज़ू के बदले हो ता ग़ुस्ल के बदले दोनों में कोई अंतर नही है हां एहतियाते मुसतहिब यह है कि अगर तयम्मुम ग़ुस्ल के बदले में हो तो दूसरी बार फिर दोनों हाथों को ज़मीन पर मार कर बाएं हाथ की हथेली से दाहिने हाथ के ऊपरी भाग का और दाहिने हाथ की हथेली से बाएं हाथ के ऊपरी भाग का मसा करे।
मसअला 651. पूरे माथे और हथेलियों के पूरे ऊपरी भाग का मसा करना आवश्यक है अगर थोड़ा सा भी मसा रह गया तो तयम्मुम सही नही होगा चाहे जानबूझ कर छोड़ दे या भूले से छूट जाए, लेकिन बहुत आधिक ध्यान देने की भी आवश्यकता नही है बस इतना काफ़ी है कि कहा जाए पूरे माथे और दोनो हाथ के ऊपरी भाग का मसा कर लिया है।
मसअला 652. इस विश्वास के लिए कि पूरे माथे और दोनो हथेलियों के ऊपरी भाग का मसा कर लिया है थोड़ा थोड़ा उनके किनारों को भी मसे में समिलित कर ले, लेकिन उंगलियों के बीच के भाग का मसा वाजिब नही है और एहतियाते वाजिब है कि माथे और हथेलियों के ऊपरी भाग का मसा ऊपर से नीचे की तरफ़ किया जाए और तयम्मुम के सारे कार्यों के एक के बाद एक लगातार किया जाए, अगर तयम्मुम के कार्यों के बीच इतनी देरी हो जाए कि तयम्मुम का रूप ही बक़ी नही रह जाए तो तयम्मुम सही नही है।
मसअला 653. नियत करते समय वह निश्चित करना आवश्यक नही है कि यह तयम्मुम वज़ू के बदले में है, या ग़ुस्ल के बदले में, केवल ख़ुदा के आदेश के पालन की नियत का होना काफ़ी है बल्कि एक के स्थान पर दूसरे की नियत करे लेकिन उसका मक़सद ख़ुदा के वास्तविक आदेश का पालन हो तो तयम्मुम सही है।
मसअला 654. एहतियाते वाजिब के अनुसार तयम्मुम के अंगों और हथेलियों का पवित्र होना अनिवार्य है, लेकिन अगर हथेली अपवित्र हो और उसको पवित्र नही कर सकता हो तो उसी तरह तयम्मुम करे।
मसअला 655. तयम्मुम के अंगों पर जो रुकावटें हों उसको दूर कर देना चाहिए अगर हाथ में अंगूठी हो तो उतार देना चाहिए इसी प्रकार अगर सर के बाल माथे पर गिरे हों तो उनको हटा दें यहा तक कि अगर ध्यान देने योग्य संभावना हो कि रुकावट है तो उसकी छानबीन करनी चाहिए।
मसअला 656. अगर माथे या हथेलियों के ऊपरी भाग या हथेलियों पर घाव हो और उसपर कोई कपड़ या इसी प्रकार की कोई दूसरी वस्तु बंधी हो जिसका खोलना संभव नही हो या खोलने से हानि होती हो तो इसी प्रकार तयम्मुम करे।
मसअला 657. अगर कोई स्वंय तयम्मुम नही कर सकता तो किसी सी सहायता ले जो उसके हाथों को ज़मीन पर मारे, अगर यह संभव नही हो तो ज़मीन पर रखे और उसी के हाथ से उसके तयम्मुम कराए, और अगर यह संभव नही हो तो वह व्यक्ति अपने हाथों को किसी ऐसी वस्तु पर मारे जिस पर तयम्मुम करना सही हो और अपने हाथ को उसके माथे और हथेलियों के ऊपरी भाग पर फेरे।
मसअला 658. तयम्मुम करने के बाद अगर शक हो कि तयम्मुम सही किया था कि नही तो अपने शक पर ध्यान नही दे लेकिन अगर तयम्मुम करने के बीच में शक हो जाए तो एहतियाते वाजिब के अनुसार पलट कर जिस भाग के लिए शक हो रहा है दोबारा अंजाम दे।
मसअला 659. जिस का दायित्व तयम्मुम है वह नमाज़ के समय से पहले तयम्मुम नही करे लेकिन अगर किसी दूसरे वाजिब या मुसतहिब कार्य के लिए तयम्मुम किया हो और नमाज़ के समय तक वह कारण जिसकी वजह से तयम्मुम कर रहा हैं बाक़ी रहे तो उसी तयम्मुम से नमाज़ पढ़ सकता है।
मसअला 660. जिसका दायित्व तयम्मुम हो अगर विश्वास हो या संभावना हो कि अंतिम समय तक उसका वह कारण जिसकी वजह से तयम्मुम कर रहा है बाक़ी रहेगा तो वह तयम्मुम से पहले समय में ही नमाज़ पढ़ सकता है। लेकिन अगर यक़ीन हो कि अंतिम समय तक वह कारण समाप्त हो जाएगा तो एहतियाते वाजिब के अनुसार रुका रहे।
मसअला 661. जो व्यक्ति तयम्मुम से नमाज़ पढ़ता हो वह इस अवस्था (तयम्मुम की हालत में) क़ज़ा नमाज़ भी पढ़ सकता है, लेकिन अगर विश्वास हो कि कारण शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा तो देर करे (नमाज़ पढ़ने में)।
मसअला 662. जो व्यक्ति वज़ू या ग़ुस्ल नही कर सकता उसके लिए तयम्मुम से मुसतहिब नमाज़ें पढ़नी जाएज़ हैं बल्कि अगर नमाज़े शब के लिए समय कम बचा है तो तयम्मुम से पढ़ सकता है।
मसअला 663. जो व्यक्ति पानी नही होने या किसी और कारण से तयम्मुम करे, पानी मिल जाने के बाद या वह कारण समाप्त हो जाने के बाद उसका तयम्मुम अपने आप टूट जाता है।
मसअला 664. जो चीज़ें वज़ू को तोड़ देती हैं वह वज़ू के बदले किए हुए तयम्मुम को भी तोड़ देती हैं और जो चीज़े ग़ुस्ल को तोड़ देती हैं वह ग़ुस्ल के बदले किए हुए तयम्मुम को भी तोड़ देती हैं।
मसअला 665. अगर किसी पर कई ग़ुस्ल वाजिब हो जाएं और वह ग़ुस्ल नही कर सके तो एक तयम्मुम अगर सब की नियत से किया जाए तो सारे ग़ुस्लों के बदले एक तयम्मुम काफ़ी है।
मसअला 666. अगर ग़ुस्ल के बदले तयम्मुम करे तो उस तयम्मुम के बाद वज़ू की आवश्यकता नही है और न ही किसी ऐसे तयम्मुम की आवश्यकता है जो वज़ू के बदले में किया जाए चाहे वह जनाबत का ग़ुस्ल हो या कोई दूसरा ग़ुस्ल, लेकि एहतियाते मुसतहिब यह है कि (जनाबत के ग़ुस्ल के अतिरिक्त) दूसरे ग़ुस्लों के लिए वज़ू करे या अगर वज़ू नही कर सकता तो वज़ू के बदले तयम्मुम करे।
मसअला 667. अगर ग़ुस्ल के बदले में तयम्मुम किया हो और उसके बाद कोई ऐसा कार्य करे जिससे वज़ू टूट जाता हो तो दूसरी नमाज़ों के लिए केवल वज़ू करे और अगर वज़ू नह कर सकता
तयम्मुम से पढ़ सकता है। 637-647हो तो वज़ू के बदले तयम्मुम करे। 668-669
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