मसअला 246. मृत पशु या वह जानवर जो जन्म से अपवित्र है (जैसे कुत्ता, सुअर आदि) की खाल से बनाया जाने वाला बर्तन या मश्क (पानी भरने की खाल) का प्रयोग खाने, पीने, या वज़ू, ग़ुस्ल करने में जाएज़ नही है। लेकिन जिन कार्यों में पवित्रता आवश्यक नही है जैसे खेतों की सिचाई, जानवरों को पानी पिलाना आदि में प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन एहतियाते मुसतहिब है कि किसी भी प्रकार के प्रयोग में न लाया जाए।
मसअला 247. सोने, चाँदी के बर्तन में खाना खाना, पानी पीना या उन का प्रयोग करना हराम है, बल्कि इन चीज़ों से कमरों को सजाना या कोई और लाभ उठाना भी (एहतियाते वाजिव के अनुसार) जाएज़ नही है।
मसअला 248. सोने, चाँदी के बर्तन बनाने और उनका श्रमिक लेने से (अहतियाते वाजिब के अनुसार) बचना चाहिए। इसी प्रकार उसको ख़रीदने और बेचने से भी बचना चाहिए और इन बर्तनों को बेंच कर जो पैसा लिया जाता है उसमे भी इश्काल है।
मसअला 249. जिस वस्तु को बर्तन नही कहा जाए जैसे कप का कुंढा, हुक़्क़े की हवा खींचने वाला पाइप, तलवार की नियाम आदि यह अगर सोने, चाँदी के हों तो कोई हर्ज नही है। लेकिन एहतियाते वाजिब के अनुसार सोने या चाँदी के इत्र दान, सुरमा दानी से परहेज़ करना चाहिए।
मसअला 250. जिस बर्तन पर सोने या चाँदी का पानी चढ़ा हो उस (के प्रयोग) में कोई हर्ज नही है।
मसअला 251. अगर सोने या चाँदी के साथ कोई और धातु मिलाकर कोई ऐसा बर्तन बनाएं जिसको सोने या चाँदी का बर्तन न कहा जा सके तो उसको प्रयोग करने में कोई हर्ज नही है। लेकिन अगर केवल सोने और चाँदी को आपस में मिलाएं तो हराम है।
मसअला 252. सोने, चाँदी के बर्तन में रखे हुए खाने को हराम से बचाने के लिए किसी दूसरे बर्तन में डालकर प्रयोग करना जाएज़ है। लेकिन अगर यह मक़सद न हो तो हराम है। बहर हाल सोने, चाँदी के बर्तन से दूसरे बर्तन में डाल कर खाना खाना जाएज़ है।
मसअला 253. मजबूरी होने पर चाँदी के बर्तन का प्रयोग जाएज़ है, बल्कि तक़य्या के समय इससे वज़ू या ग़ुस्ल करना भी जाएज़ है।
मसअला 254. अगर यह शक हो कि यह बर्तन सोने, चाँदी का है या किसी और धातु का तो उसका प्रयोग करना जाएज़ है। छानबीन की आवश्यकता नही है।
मसअला 255. एहतियाते वाजिब के अनुसार “वाइट गोल्ड” भी लाल और पीले सोने के हुक्म में है अगर उसको सोना कहा जाता हो।