मसअला 637. अगर कोई वज़ू या ग़ुस्ल किए मुसतहिब चीज़ो (जैसे अक़ामत और क़ुनूत आदि) पढ़े बिना नमाज़ पढ़ सकता है तो ऐसा ही करे बल्कि अगर सूरे (अलहम्द के बाद का दूसरा सूरा) का भी समय नही हो तो उसको भी छोड़ दे और वज़ू से नमाज़ पढ़े।
किन चीज़ों पर तयम्मुम किया जा सकता है?
मसअला 638. कुछ चीज़ों पर तयम्मुम जाएज़ हैः मिट्टी, कंकर, रेत (बालू), ढेला, पत्थर लेकिन इस शर्त के साथ कि यह चीज़े पवित्र हों, और कम से कम थोड़ी सी गर्द उनपर हो।
मसअला 639. चूने के पत्थर, गच के पत्थर, सगे मरमर, काला पत्थर और इसी प्रकार के दूसरे पत्थर पर तयम्मुम जाएज़ है लेकिन आभूषणों पर जैसे अक़ीक़, फ़िरोज़ा के पत्थ आदि पर तयम्मुम सही नही है और एहतियाते वाजिब के अनुसार गच और पक्का चूना ईंट और कूज़े पर तयम्मुम नही किया जाए।
मसअला 640. पहले बताई हुई चीज़े अगर नही मिलें तो कपड़े आदि पर जो गर्द और मिट्टी आदि है उसपर तयम्मुम कर लें, और अगर गर्द भी नही मिले तो गीली मिट्टी पर तयम्मुम कर लें और अगर वह भी नही हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़ बिना तयम्मुम के पढ़े और बाद में उसकी क़ज़ा भी करे ऐसे व्यक्ति को फ़ाक़िदुल तहूरैन (जिसके पास वज़ू, ग़ुस्ल और तयम्मुम कुछ भी नही हो) कहा जाता है।
मसअला 641. जिसके पास पानी नही हो लेकिन प्रकृतिक बर्फ़ या कारख़ाने में बनाई जाने वाली बर्फ़ हो तो अगर संभव हो कि उसको पिघला कर पानी कर ले और फिर उससे वज़ू या ग़ुस्ल करे।
मसअला 642. अगर ख़ाक और रेत के साथ घास या दूसरी चीज़ें मिली हुई हों तो उससे तयम्मुम सही नही है लेकिन अगर मिट्टी और रेत में घास इतनी कम हो कि जिसपर ध्यान नही दिया जाता हो तो उससे तयम्मुम किया जा सकता है।
मसअला 643. अगर तयम्मुम के लिए ख़ाक आदि नही हों लेकिन ख़रीद सकता हो तो ख़रीदना वाजिब है।
मसअला 644. मिट्टी की दीवार पर तयम्मुम सही है लेकिन एहतियाते मुसतहिब यह है कि जब तक सूखी ज़मीन या सूखी मिट्टी मिल करे उस समय तक गीली मिट्टी और ज़मीन पर तयम्मुम नही करे।
मसअला 645. जिस वस्तु पर तयम्मुम किया जाए एहतियाते वाजिब के अनुसार वह ग़स्बी नही हो लेकिन अगर जानता नही है कि ग़स्बी है या नही या भूल गया हो तो उसका तयम्मुम सही है लेकिन अगर स्वंय ही ग़स्ब किया है तो भूलने पर भी तयम्मुम सही नही है।
मसअला 646. जो व्यक्ति किसी ग़स्बी स्थान पर बंद कर दिया गया हो वह उस स्थान के पत्थर या मिट्टी पर तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ सकता है।
मसअला 647. जैसा कि पहले बयान किया गया कि जहां तक हो सके तयम्मुम उस वस्तु पर वाजिब है जिस पर गर्द और ख़ाक हो जो हाथों पर रह जाए और उसपर हाथों को मार कर झटक