मसअला 541. मुसलमान मुर्दे को तीन कपड़ों में कफ़न देना वाजिब है एक लुंगी दूसरा पैराहन (क़मीज़) तीसरी चादर।
मुसलमान 542. लुंग ऐसी हो कि जांघ से नाभि तक बदन के सारे भागों को छुपा सके और बेहतर यह है कि सीने से पैरों तर पहुंच जाए और एहतियाते वाजिब के अनुसार क़मीज़ कांधे से आधि पिंडली कर के सारे बदन को छुपा सकने वाली हो। और चादर एहतियाते वाजिब के अनुसार इतनी लंबी हो कि सर तक पैरों ती तरफ़ बंधना संभव हो और इतनी चौड़ी हो कि एक तरफ़ का भाग दूसरी तरफ़ डाला जा सके।
मसअला 543. वाजिब और मुसतहिब कफ़न सामान्यता दोनो को मुर्दे की सम्पत्ति से लिया जा सकता है चाने मुर्दे के उत्तराधिकारियों में नाबालिग़ भों हों लेकिन सामान्य से अधिक मात्रा को नाबालिग़ की सम्पत्ति से नही लिया जा सकता है मगर यह कि उसने वसीयत कर दी हो तो इस अवस्था में उस अधिक मात्र को तीसरे हिस्से से लिया जा सकता है।
मसअला 544. वाजिब कफ़न की मात्रा और दूसरे वाजिबात जैसे ग़ुस्ल, हुनूत दफ़न के ख़र्चो को असली सम्पत्ति से लिया जाएगा, इसमे किसी वसीयत की आवश्यकता नही है, और अगर मुर्दे के पास सम्पत्ति नही है ते यह ख़र्चें बैतुल माल से किए जाएंगे।
मसअला 545. पत्नि का कफ़न पति का दायित्व है चाहे पत्नि स्वंय मालदार लो, जिस औरत को तलाक़ रजई (वह तलाक़ जिस में एक विषेश समय के समाप्त होने से पहले दोबारा एक दूसरे से संपर्क किया जा सकता है और तलाक़ को समाप्त किया जा सकता है) दी गई है अगर वह औरत इद्दा समाप्त होने से पहले मर जाए तो उसका भी कफ़न पति का दायित्व होगा।
मसअला 546. अगर मुर्दे के पास को सम्पत्ति नही है तो रिश्तेदारों पर उसका कफ़न वाजिब नही है चाहे मुर्दा उसका वाजिबुल नफ़्क़ा (जिसका भरण पोषण वाजिब हो) ही रहा हो, लेकिन अगर कोई दूसरा माध्यम नही है तो एहतियाते वाजिब यह है कि जिस व्यक्ति पर उसक भरण पोषण वाजिब था वह मुर्दे का कफ़न दे।
मसअला 547. एहतियाते वाजिब है कि कफ़न के तीनो टुकड़े इतने मोटे हो कि मुर्दे का बदन दिखाई नही दे।
मसअला 548. ग़स्बी (छीने चोरी किए या और किसी ऐसे तरीक़े से लिया गया कि जिसमे मालिक की स्वीकृति नही हो) कपड़े में कफ़न देना जाएज़ नही है चाहे कफ़न के लिए कोई दूसरी वस्तु मिले या नही मिले और अगर मुर्दे को ग़स्बी कफ़न दिया गया हो और उसके मालिक की स्वीकृति नही हो तो मुर्दे के बदन से उसका कफ़न उतार लेना वाजिब है चाहे उसको दफ़न भी कर चुके हों, और यह दायित्व उस व्यक्ति का है जिसने यह कार्य (कफ़न देना) किया है, इसी प्रकार मुरदार (वह जानवर जिसको धार्मिक तरीक़े से ज़िबह नही किया गया हो या कोई हराम गोश्त जानवर) की खाल और अपवित्र वस्तु में भी कफ़न देना जाएज़ नही है और एहतियाते वाजिब यह है कि शुद्ध रेशमी कपड़े और सोने के तारों से बने हुए कपड़े और उस कपड़े में दिस को हराम गोश्त जानवर के ऊँन और बाल से बनाया गया हो कफ़न नही दें, हां अगर विवश हों तो और बात है।
मसअला 549. जानवरों की खाल में कफ़न देना चाहे वह हलाल गोश्त की ही हो विवशता के अतिरिक्त में इश्काल है परन्तु हलाह गोश्त जानवर के ऊन और बाल से बने हुए कपड़े में कफ़न देने में कोई हर्ज नही है, अगरचे एहतियाते मुसतहिब यह है कि यह भी नही करें।
मसअला 550. अगर कफ़न किसी बाहरी अपवित्र वस्तु के कारण या स्वंय मुर्दे की अपवित्रता से अपवित्र हो जाए तो उसको धो डालें या अगर कफ़न बरबाद नही होता हो तो उसको काट दें और अगर यह भी संभव नही हो और बदल सकते हों तो कफ़न को बदल देना चाहिए।
मसअला 551. हज या उमरे का एहराम बांधे हुए अगर कोई मर जाए तो दूसरों की तरह इसको भी कफ़न दें और उसके सर और चेहरे को छिपाने में कोई हर्ज नही है।