मसअला 131. जो इन्सान हराम से मुजनिब हो चाहे ज़िना, लवात, या हस्थ मैथुन से उसका पसीना अपवित्र नही है परन्तु जब तक पसीना बदन और कपड़े पर हो एहतियाते वाजिब यह है कि उसमे नमाज़ ना पढ़े।
मसअला 132. एहतियाते वाजिब के अनुसार हराम से मुजनिब होने वाले के पसीने से बचना चाहिए और इस एहतियात की रिआयत करने के लिए बेहतर यह है कि नार्मल पानी से ग़ुस्ल करे ताकि ग़ुस्ल करते समय उसके बदन में पसीना नही आए यह उस समय है जब क़लील पानी से ग़ुस्ल करे और अगर कुर पानी या जो कुर के हुक्म में हो उससे ग़ुस्ल करे तो होई हर्ज नही है लेकिन (एहतियाते मुसतहिब के अनुसार) ग़ुस्ल करने के बाद एक बार पूरे बदन पर पानी डाले।
मसअला 133. रमज़ान के रोजे या मासिक धर्म मे की हालत मे पत्नी से संभोग करना हराम है और अगर पसीना आजाए तो एहतियात वाजिब के अनुसार हराम से मुजनिब होने वाले का जो हुक्म वही उसका भी हुक्म होगा।
मसअला 134. हराम से मुजनिब होने वाले के पसीने का अर्थ संभोग करते समय या उसके बाद जो पसीना आए वह है।
मसअला 135. हराम से मुजनिब होने वाला अगर पानी ना होने के कारण या किसी दूसरे कष्ट के कारण या समय कम होने के कारण तयम्मुम करे तो तयम्मुम के बाद उसके बदन का पसीना पवित्र है और उसमें नमाज़ पढ़ना जाएज़ है।