क़ब्र खोलने के अहकाम 598-603

SiteTitle

صفحه کاربران ویژه - خروج
ورود کاربران ورود کاربران

LoginToSite

SecurityWord:

Username:

Password:

LoginComment LoginComment2 LoginComment3 .
SortBy
 
तौज़ीहुल मसाएल
का पालन करे। 594-597शहीद के अहकाम 604- 608
मसअला 598. मुसलमान की क़ब्र को खोलना हराम है चाहे वह क़ब्र बच्चे या किसी पागल की हो, क़ब्र खोलने से हमार अर्थ यह है कि इस प्रकार खोली जाए कि मृतक का बदन दिखने लगे, लेकिन अगर बदन दिखाई नही दे तो खोलने मे कोई हर्ज नही है मगर यह कि क़ब्र को खोलना उसके अपनाम का कारण बने (तो हराम है)
मसअला 599. अगर विश्वास हो कि बदन बिलकुल सड़ चुका है तो फिर क़ब्र को खोदने में कोई हर्ज नही है, लेकिन अगर किसी इमाम ज़ादे, शहीद, धर्म गुरू, ने इन्सान की क़ब्र हो तो चाहे जितना समय बीत जाए उसका खोलना जाएज़ नही है।
मसअला 600. कुछ जगहों पर क़ब्र को खोदना हराम नही हैः
1. अगर शव ग़स्बी ज़मीन पर दफ़्न हो गया हो और ज़मीन का मालिक राज़ी नही हो इसी प्रकार कफ़न या कोई दूसरी वस्तु जो शव के साथ दफ़्न हो गई हो या मृतक की सम्पत्ति में से कोई ऐसी वस्तु जिसका संबंध वारिसों से हो वह शव के साध दफ़्न हो गई हो और उसके उत्तराधिकारी राज़ी नही हों कि वह वस्तु क़ब्र में रहे, (जैसे अंगूठी, या कोई और बहूमूल्य वस्तु) लेकिन अगर मृतक ने वसीयत कर दी हो कि कोई दुआ, क़ुरआन, अंगूठी उसके साथ दफ़्न कर दी जाए तो अगर उसकी वसीयत, वसीयत (इस्लाम में वसीयत किए जाने) की मात्र से अधिक में नही हो और इसराफ़ भी नही हो तो क़ब्र को नही खोलना चाहिए।
2. किसी का हक़ सिद्ध करना मृतक के बदन के देखने पर ही निर्भर हो।
3. मृतक को ऐसे स्थान पर दफ़्न कर दिया गया हो जहां उसका अपमान हो जैसे काफ़िरों के क़ब्रिस्तान या जहां कूड़ा और गंदगी डाली जाती हो।
4. किसी ऐसे धर्मिक मक़सद को अंजाम देने के लिए जिसका महत्व क़ब्र खोलने से अधिक हो जैसे जीवीत बच्चे को गर्भवती औरत के पेट से निकालना हो (अगरचे मालूम हो कि बच्चा माँ के थोड़ी देर बाद तक संभंव है जीवित हो)
5. जिस स्थान पर यह डर हो कि कोई जानवर मृतक के शरीर को हानि पहुंचाएगा या दुश्मन लाश ले जाएगा।
6. जहां पर मृतक का कोई अंग मृतक के साथ दफ़्न नही हुआ हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि उस अंग को इस प्रकार दफ़्न करें कि मृतक का शरीर दिखाई नही दे।
मसअला 601. अगर कोई वसीयत कर जाए कि उसको किसी विषेश स्थान पर दफ़्न किया जाए और उसके उत्तराधिकारी उसकी वसीयत का पालन नही करें और किसी और स्थान पर दफ़्न कर दें तो यह जाएज़ नही है कि क़ब्र को खोदकर मृतक को वसीयत के स्थान पर दफ़्न किया जाए।
मसअला 602. अगर कोई वसीयत करे कि दफ़्न के बाद उसकी क़ब्र खोदकर शरीर को किसी पवित्र स्थान या किसी और स्थान पर भेज दिया जाए तो ऐसी वसीयत का पालन करना कठिन है।
मसअला 603. अगर शव को दफ़्न में देरी करना उसके अपमान का कारण बने तो जाएज़ नही है।
का पालन करे। 594-597शहीद के अहकाम 604- 608
12
13
14
15
16
17
18
19
20
Lotus
Mitra
Nazanin
Titr
Tahoma