मसअला 515. मुसतहिब है कि मरने के बाद मुर्दे का मुंह बंद कर दिया जाए, ताकि वह खुला नही रहे, आँखो और ठुड्डी को बांध दिया जाए, हाथों को सीधा कर दें, मुर्दे पर एक चादर डाल दें, तशीय जनाज़ा (मुर्दे के किर्या करम में समिलित होने) के लिए मोमिनों को समाचार कर दें, परन्तु अगर मौत का विश्वास नही हुआ है तो जब तक मौत का विश्वास नही हो जाए तब तक सब्र करे।
मसअला 516. अगर कोई औरत मर जाए और उसके पेट में जीवित बच्चा हो या उसके जीवित होने की संभावना हो तो बाएं पहलू को चाक करके बच्चे को बाहर निकाल लें और फिर पहलू को सिल दें, और अगर डॉक्टरों से संपर्क कर सकते हों तो डॉक्टरों की निगरानी में इस कार्य को करना चाहिए।
मसअला 517. मुसलमान मुर्दे को ग़ुस्ल देना, कफ़न देना, दफ़न करना वाजिबे किफ़ाई है यानि अगर कुछ लोगों ने कार्य कर दिया हो तो सब का दायित्व समाप्त हो जाएगा और अगर किसी ने नही किया तो सब गुनाहगार हैं और इस मसअले में मुसलमानों के विभिन्न संम्प्रदायों में कोई विवाद नही है।
मसअला 518. अगर कोई व्यक्ति ग़ुस्ल, कफ़न, दफ़न करने में लग जाए तो दूसरों पर इस कार्य के लिए आगे बढ़ना वाजिब नही है लेकिन अगर वह अपने कार्य को अधूरा छोड़ दें तो दूसरों को कार्य पूरा करना चाहिए और अगर शक हो कि किसी ने मुर्दे को कार्यों को किया है कि नही तो स्वंय उसको यह करना चाहिए।
मसअला 519. अगर किसी ने मुर्दे के ग़ुस्ल, कफ़न, दफ़न और नमाज़ का कार्य आरम्भ कर दिया हो और हमको मालूम नही हो उसने सही कार्य किया है कि नही तो मान लेना चाहिए कि उसने सही कार्य किया है और अगर विश्वास हो कि सही नही किया है तो दोबारा करना चाहिए।
मसअला 520. मुर्दे के ग़ुस्ल, कफ़न, दफ़न और नमाज़ के लिए उसके उत्तराधिकारी से आज्ञा लेनी चाहिए, पत्नि के लिए पति सब से पहले है और उसके बाद वह लोग हैं जो मुर्दे से मीरास पाते हैं, मीरास ही के क्रम अनुसार से उत्ताधिकार है और अगर एक वर्ग में मर्द और औरत दोनों हों तो एहतियात यह है कि दोनो से आज्ञा ली जाए।
मसअला 521. अगर कोई कहे कि मैं मुर्दे का उत्तराधिकारी हूँ या मुर्दे के उत्तराधिकारी ने मुझे आज्ञा दी है कि इसके कार्यों को अंजाम दूँ और मुर्दे का शरीर (भी) उसी के अधिकार में हो तो मुर्दे के कार्यों को उसकी स्वीकृति से करना चाहिए।
मसअला 522. अगर मुर्दा अपने कार्यो के लिए अपने उत्तराधिकारी के अतिरिक्त किसी और तो निश्चित कर जाए जैसे वसीयत कर जाए कि फ़ला व्यक्ति मेरी नमाज़े जनाज़ा पढ़े तो उसके अनुसार करना अनिवार्य है वैसे एहतियाते मुसतहिब है कि उत्तराधिकारी से भी आज्ञा ले ली जाए लेकिन मुर्दे ने जिस व्यक्ति को इन कार्यों को करने के लिए निश्चित किया है आवश्यक नही है कि वह इसको स्वीकार भी करले, अगरचे स्वीकार करले तो बेहतर है और अगर स्वीकार करे तो उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।
मसअला 523. अगर पता हो कि उत्तराधिकारी की स्वीक्रति है लेकिन ज़बान से साफ़ साफ़ नही कहा है तो अगर उसकी हालत को देखकर लगता है कि उसकी स्वीक्रति है तो यही काफ़ी है।