मसअला 629. अगर किसी के पास प्रयाप्त पानी हो लेकिन अगर उससे वज़ू या ग़ुस्ल करे तो डर है कि वह या उसके बच्चे या उसके दोस्त या उसके साथी प्यास से मर जाएंगे या बीमार हो जाएंगे या सामान्य से अधिक कठिनाएयों और मुसीबतों में पड़ जाएंगे तो उसको तयम्मुम से नमाज़ पढ़नी चाहिए और पानी को बचाकर रखना चाहिए इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति, चाहे वह मुसलमान नही भी तो और उसकी जान को ख़तरा हो पानी उसको देदे और स्वंय तयम्मुम करे। जानवरों (की जान) के लिए भी यही आदेश है।
मसअला 630. अगर कोई पवित्र पानी के साथ साथ अपवित्र पानी भी पीने का मात्रा भर रखता हो तो अपवित्र पानी से लाभ नही उठा सकता, पवित्र पानी को पीने के लिए रख ले और तयम्मुम से नमाज़ पढ़े, हां लेकिन अपवित्र पानी जानवर को पिला सकता है।
तयम्मुम की पांचवी जगह
मसअला 631. जिसके पास केवल इतना पानी हो कि अगर उससे वज़ू या ग़ुस्ल करे तो बदन या कपड़े को पवित्र करने के लिए कुछ नही बचेगा तो उसको चाहिए कि पानी से शरीर या कपड़े को पवित्र करे उसके बाद तयम्मुम से नमाज़ पढ़े, लेकिन अगर उसके पास कोई ऐसी वस्तु नही है जिससे तयम्मुम कर सके तो पानी से वज़ू या ग़ुस्ल करे और अपवित्र शरीर या कपड़े से नमाज़ पढ़े।