मसअला 102. इन्सान और हर वह जानवर जो ख़ूने जहिन्दा रखता हो उसका ख़ून अपवित्र है लकिन जो जानवर ख़ूने जहिन्दा वाला नही हो जैसे मछ्ली साँप और इसी तरह मछ्छर का ख़ून पवित्र है।
मसअला 103. जो हलाल गोश्त जानवर धार्मिक अदेशों के अनुसार ज़िबह किया गया हो और सामान्या निकले वाला ख़ून निकल जाए तो बदन मे रह जाने वाला ख़ून पवित्र है। लेकिन अगर जानवर के सर को ऊँचे स्थान पर रखें और ख़ून जानवर के बदन मे वापिस चला जाए तो अपवित्र है लेकिन अगर सांस लेने के कारण ख़ून बदन मे वापिस जाए तो एहतियात यह है कि उससे बचा जाए।
मसअला 104. एहतियाते वाजिब के अनुसार मुर्गी के अंडे मे जो ख़ून होता है वह अपवित्र है और उसका खाना भी हराम है।
मसअला 105. दूध दुहते समय उसमें जो ख़ून दिखाई देता है वह अपवित्र है और दुग्घ को भी अपवित्र कर देता है।
मसअला 106. मुसूढ़े या मुंह की दूसरी जहगों से निकलने वाला ख़ून अगर थूक मे मिल जाए और समाप्त हो जाए तो पवित्र है, और उस थूक को पीना भी हलाल है, लेकिन जानबूझ यह नही करना चाहिए।
मसअला 107. वह ख़ून जो चोट लगने के कारण नाख़ून या खाल के नीचे रह जाता है अगर वह ऐसा हो जाए की उसको ख़ून ना कहा जाए तो वह पवित्र है, परन्तु अगर ख़ून उसको ख़ून कहा जाए तो जब तक खाल और नाख़ून के नीचे है वज़ू ग़ुस्ल और नमाज़ सही है और अगर उस मे छेद हो जाए तो अगर बहुत अधिक दर्द ना हो तो उस को वज़ू और ग़ुस्ल के लिए निकालना चाहिए और अगर अधिक दर्द हो तो उसके आसपास के भाग को वज़ू और ग़ुस्ल करते समय धोलें और उसके ऊपर एक कपड़ा रखें और गीला हाथ फेर दें और एहतियात के अनुसार तयम्मुम भी कर लें।
मसअला 108. अगर मालूम ना हो कि खाल के नीचे का काला पन ख़ून है या चोट लगने के कारण गोश्त का रंग बदल गया है तो पवित्र है।
मसअला 109. खाल के जलने से या घाव के कारण घाव के आस पास जो पीप हो जाती है अगर मालूम ना हो कि ख़ून है या ख़ून से मिली हुई तो पवित्र है।
मसअला 110. घाव के धोने के बाद या घाव के अच्छा होते समय ऊपर जो पपङी पड़ जाती है वह पवित्र है, लेकिन अगर यह विश्वास हो कि उसमे ख़ून है तो वह अपवित्र है।