मसअला 524. मुसलमान मुर्दे को तीन ग़ुस्ल देना वाजिब हैः
1. उस पानी से जिसमें बेर के पत्ते मिले हों।
2. उस पानी से जिसमें काफ़ूर मिला हो।
3. पानी से। लेकिन शहीद और दूसरे लोगों के ग़ुस्ल नही दिया जाता जिसका विवरण बाद में आएगा।
मसअला 525. अगर बेरी के पत्ते और काफ़ून पानी में इतना अधिक हो कि पानी मुज़फ़ हो जाए तो कोई हर्ज नही है। परन्तु इतना कम नही हो कि कहा जाने लगे कि इसमे बेरी के पत्ते या काफ़ूर मिलाया ही नही गया है। अगर मुज़ाफ़ हो जाए तो बेहतर यह है कि मुर्दे के पहले उससे धोएं उसके बाद पानी उसके ऊपर डाल दें ताकि मुतलक़ (शुद्ध पानी) की तरह हो जाए।
मसअला 526. अगर आवश्यकता अनुसार बेरी के पत्ते और काफ़ूर नही मिल सके तो एहतियाते वाजिब के अनुसार जितना भी मिल सके पानी में डाल दें और अगर बिलकुल नही मिले तो उसके बदले शुद्ध पानी से ग़ुस्ल देदें।
मसअला 527. हज या उमरे का एहराम बांधने वाला व्यक्ति अगर तवाफ़ समाप्त करने और उसपर ख़ुशबू हलाल होने से पहले मर जाए तो उसको काफ़ूर के पानी के बजाए शुद्ध पानी से ग़ुस्ल देना चाहिए।
मसअला 528. मुर्दे को ग़ुस्ल देने वाले को मुसलमान, बालिग़. आक़िल, होना चाहिए और ग़ुस्ल के आवश्यक मसअलों को जानने वाला होना चाहिए और एहतियाते मुसतहिब है कि शिया (बारह इमामों का मानने वाला) हो।
मसअला 529. मुर्दे का ग़ुस्ल क़ुरबत की नियत यानि ईश्वर के लिए करना चाहिए।
मसअला 530. मुसलमान का बच्चा चाहे ज़िना से पैदा हुआ हो उसका ग़ुस्ल वाजिब है और जो व्यक्ति बचपन से ही पागल हो और पागलपन में ही बालिग़ हुआ हो तो अगर उसके माँ बाप मुसलमान हों तो उसका (भी) ग़ुस्ल वाजिब है इसी प्रकार जो व्यक्ति पहले मुसलमान रहा हो फिर पागल हो गया हो उसका भी ग़ुस्ल वाजिब है।
मसअला 531.गर्भ में मर जाने वाला बच्चा अगर चार महीने या उससे अधिक का हो तो उसको भी ग़ुस्ल देना चाहिए और अगर उससे कम हो तो एहतियाते वाजिब के अनुसार बिना ग़ुस्ल के एक पवित्र कपड़े में लपेट कर दफ़न कर दे।
मसअला 532. मर्द औरत को और औरत मर्द को ग़ुस्ल नही दे सकता परन्तु पति पत्नि एक दूसरे को ग़ुस्ल दे सकते हैं, अगरचे मुसतहिब यह है कि अगर आवश्यकता नही हो तो यह कार्य नही करे (यानि पति पत्नि भी एक दूसरे को ग़ुस्ल नही दें)
मसअला 533. मर्द तीन साल के कम की लड़की को ग़ुस्ल दे सकता है और औरत तीन साल से कम के लड़के को ग़ुस्ल दे सकती है।
मसअला 534. अगर मर्द की मुर्दे को ग़ुस्ल देने के लिए कोई मर्द नही मिल सके तो जो औरतें उसकी महरम हैं उस मर्द को ग़ुस्ल दे सकती हैं, इसी प्रकार अगर औरत के मृत शरीर को ग़ुस्ल देने के लिए औरत नही मिल सके तो उस औरत के महरम मर्द उसको ग़ुस्ल दे सकते हैं लेकिन बेहतर यह है कि कपड़े के ऊपर से ग़ुस्ल दें।
मसअला 535. अगर मर्द के मृत शरीर को मर्द या औरत के शरीर को औरत ग़ुस्ल दे तो गुप्तांग के अलावा उसके पूरे बदन से कपड़ा हटा सकते हैं।
मसअला 536. मुर्दे के गुप्तांगों को देखना हराम है, लेकिन इससे (देखने से) ग़ुस्ल नही टूटता।
मसअला 537. अगर मुर्दे का कोई अंग अपवित्र हो गया हो तो ग़ुस्ल देने से पहले उसको पवित्र कर दें और एहतियाते मुसतहिब है कि ग़ुस्ल आरम्भ करने से पहले मुर्दे के पूरे बदन को अपवित्रता से पवित्र कर दें।
मसअला 538. मुर्दे के ग़ुस्ल का तरीक़ा जनाबत के ग़ुस्ल की तरह है और एहतियात यह है कि जब तक तरतीबी ग़ुस्ल संभव हो इर्तेमासी ग़ुस्ल नही दें, परन्तु ग़ुस्ल तरतीबी में यह जाएज़ है कि बदन के तीनों भागो को पानी में डिबो दें और अगर औरत मासिक धर्म की अवस्था में या मर्द जनाबत में मर जाए तो वही मुर्दे का ग़ुस्ल काफ़ी है।
मसअला 539. मुर्दे को ग़ुस्ल देने के लिए परिश्रमिक लेना जाएज़ नही है, लेकिन उससे पहले के कार्यों के लिए जैसे उसको पवित्र करने के लिए और इसी प्रकार के दूसरे कार्यों के लिए परिश्रमिक लेने में कोई इश्काल नही है।
मसअला 540. अगर पानी नही मिले या मुर्दे का बदन इस प्रकार का हो कि उसको ग़ुस्ल नही दिया जा सकता हो या किसी भी विवशता के कारण अगर ग़ुस्ल नही दिया जा सकता हो तो मुर्दे को हर ग़ुस्ल के बदले एक तयम्युम दें, इस प्रकार कि तयम्मुम देने वाला मुर्दे के सामने बैठे और हाथों की ज़मीन पर मारे और मुर्दे के चेहरे और हथेलियों के ऊपर वाले भाग पर फेरे।