मसअला 560. हर मुसलमान बालिग़ मरने वाले पर मुर्दे की नमाज़ वाजिब है और नाबालिग़ बच्चा अगर छह साल से कम का नही हो तो उसपर भी एहतियाते वाजिब के अनुसार नमाज़ पढ़ी जाए।
मसअला 561. मुर्दे की नमाज़, ग़ुस्ल, हुनूत और कफ़न के बाद पढ़ी जानी चाहिए अगर उससे पहले या उसके أबीच में पढ़ी जाए तो सही नही है चाहे भूलकर हो जा मसअले की जानकारी ना होने के कारण हो।
मसअला 562. मुर्दे की नमाज़ से न तो वज़ू, ग़ुस्ल और तयम्मुम की शर्त है और न ही बदन एवं कपड़े की पवित्रता की परन्तु मुसतहिब है कि दूसरी नमाज़ों में जिन चीज़ो की रिआयत की जाती है उसका ध्यान रखे।
मसअला 563. मुर्दे के नमाज़ को क़िब्ले की तरफ़ चेहरा करके पढ़ना वाजिब है इसी प्रकार एहतियाते वाजिब के अनुसार मुर्दे को नमाज़ पढ़ने वाले के सामने इस प्रकार लिटाना वाजिब है कि मुर्दे का सर नमाज़ पढ़ने वाले के दाहिनी तरफ़ और पैर बाईं तरफ़ रहें।
मसअला 564. नमाज़ पढ़ने वाले का स्थान मुर्दे से ऊँची या नीची नही हो हां थोड़ी सी ऊँची या नीची होने में कोई हर्ज नही है इसी प्रकार नमाज़ पढ़ने वाले को मुर्दे से दूर नही होना चाहिए, हां जमाअत में कोई हर्ज नही है इसी प्रकार नमाज़ पढ़ने वाले को मुर्दे से दूर नही होना चाहिए हां अगर जमाअत पढ़ने वाले दूर हों तो कोई हर्ज नही है केवल सफ़ से मिलाप होना चाहिए।
मसअला 565. नमाज़ पढ़ने वाला मुर्दे के सामने खड़ा हो (कोई पर्दा या दीवार बीच में नही हो) लेकिन अगर मुर्दे को ताबूत में रखा जाए तो कोई हर्ज नही है।
मसअला 566. मुर्दे की नमाज़ खड़े हो कर क़ुरबत (ईश्वर के आदेश के पालन) की नियत से पढ़ना चाहिए, नियत के समय मुर्दे को निश्चित करना चाहिए जैसे मैं इस मुर्दे पर नमाज़ पढ़ता हूँ قربۃ الی اللہ और अगर कोई ऐसा नही हो जो खड़े हो कर नमाज़ पढ़ सकता हो तो बैठकर पढ़े।
मसअला 567. अगर मुर्दे ने किसी विषेश व्यक्ति के लिए वसीयत की हो कि फ़लां व्यक्ति मेरे जनाज़े की नमाज़ पढ़े तो उसकी वसीयत का पालन करना आवश्यक है और उत्तराधिकारी से आज्ञा लेना भी आवश्यक नही है हां लेकिन एहतियाते मुसतहिब यह है कि आज्ञा लेले।
मसअला 568. किसी मुर्दे कई बार नमाज़ पढ़ना मकरूह है बल्कि अगर एक ही व्यक्ति कई बार नमाज़ पढ़े तो इस पर इश्काल है लेकिन अगर मुर्दा ज्ञानी, पारसा, और मुत्तक़ी इन्सान हो तो मकरूह नही है।
मसअला 569. अगर मुर्दे को जानबूझ कर, भूले से, या विवशता में बिना नमाज़ के तफ़ना दिया जाए, या दफ़न करने के बाद पता चले कि जो नमाज़ उसपर पढ़ी गई थी वह सही नही थी तो उसकी क़ब्र पर उसी क्रम अनुसार नमाज़ पढ़नी वाजिब है।