मसअला 402. औरत को जो ख़ून आता है उस मे से एक इस्तेहाज़ा होता है और उस औरत को मुस्तहाज़ कहते है, नियम यह है कि जो भी ख़ून औरत के अंदर से निकलता है अगर हैज़, निफास, फोड़े और चोट के अतिरिक्त हो तो वह इस्तिहाज़ा ही होता है।
मसअला 403. इस्तेहाज़ा का ख़ून अधिकतर हल्के रंग वाला, ठंडा, और पतला होता है, और उछले और बिना जलन के निकलता है लेकिन यह भी संभव है कि कभी-कभी काला, लाल, गर्म और गाढ़ा भी आ जाए और उछल कर एवं जलन के साथ निकले।
इस्तेहाज़ा दो प्रकार का होता है:
1. क़लीला ( कम )
2. कसीरा ( ज़्यादा )
क़लीला (कम) : उस ख़ून को कहते है कि औरत जब रूई अपने अंदर डाले तो उस मे ख़ून लग जाए लेकिन दूसरी तरफ से बाहर ना निकले चाहे ख़ून पूरी रूई मे भर जाए या उसके अंदर ना भरे।
कसीरा (ज़्यादा) : कसीरा वह है कि ख़ून पूरी रूई में भर जाए और उससे बाहर भी आ जाए।
मसअला 405. इस्तेहाज़ा क़लीला मे एहतियाते वाजिब यह है कि औरत को हर नमाज़ के लिए एक वज़ू करना चाहिए और यह भी वाजिब है कि ख़ून को फैलने से रोके, लेकिन रूई और पैड का बदलना वाजिब नही है, बलकि एहतियात यह है कि बदल ले। और इस्तिहाज़ा कसीरा मे तीन ग़ुस्ल करना वाजिब है, एक नमाज़े सुबाह के लिए, एक नमाज़े ज़ोहर व अस्र के लिए, और एक नमाज़े मग़रिब व इशा के लिए। और इन नमाज़ो को (ज़ोहर और अस्र, मग़िरब और इशा) मिला कर पढ़े। और एहतियाते मुस्तहिब यह है हर नमाज़ के लिए वज़ू भी करे चाहे ग़ुस्ल से पहले या ग़ुस्ल के बाद।
मसअला 406. अगर नमाज़ का समय आने से पहले वज़ू या ग़ुस्ल कर लिया हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़ के समय फिर से करे।
मसअला 407. अगर इस्तिहाज़ा क़लील वाली औरत नमाज़े सुबह के बाद इस्तिहाज़ा कसीरा हो जाए तो नमाज़े ज़ोहर व अस्र के लिए एक ग़ुस्ल करे और अगर नमाज़े ज़ोहर व अस्र के बाद कसीरा हो जाए तो नमाज़े मग़रिब व इश के लिए एक ग़ुस्ल करे।
मसअला 408. जहां औरत को ग़ुस्ल करना वाजिब है अगर लगातार ग़ुस्ल करने से उसके लिए हानिकारक हो तो ग़ुस्ल के बदले तयम्मुम कर सकती है।
मसअला 409. इस्तिहाज़ा क़लीला या कसीरा मे अगर सुबह की आज़ान से पहले नमाज़े शब के लिए ग़ुस्ल या वज़ू करे और नमाज़े शब पढ़े तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़े सुबह के लिए फिर से वज़ू और ग़ुस्ल करे।
मसअला 410. अगर मुस्तहाज़ा औरत नमाज़े ज़ोहर या अस्र या मग़रिब और इशा की नमाज़ को अलग अलग पढ़े तो हर नमाज़ के लिए अलग वज़ू करे इसी तरह मुस्तहिब नमाज़ो के लिए भी अलग वज़ू करे, लेकिन पूरी नमाज़े शब के लिए एक वज़ू या ग़ुस्ल काफ़ी है और नामाज़े एतियात या भूले हुए सजदे या तशह्हुद के लिए वजू या ग़ुस्ल करना ज़रूरी नही है लेकिन शर्त यह है कि इन चीज़ो को नमाज़ के तुरंत बाद पढ़े।
मसअला 411. मुस्तहाज़ा औरत को ख़ून रुक जाने के बाद सिर्फ पहली वाली नमाज़ के लिए इस्तिहाज़ा वाले काम करने चाहिए।
मसअला 412. अगर यह मालूम ना हो कि औरत का इस्तेहाज़ा क़लीला है या कसीरा तो एहतियाते वाजिब के अनुसार नमाज़ से पहले अच्छी तरह से देख ले और अगर अपनी जांच नही कर सकती तो एहतियाते वाजिब यह है की क़लीला के और कसीरा दोनो के हुक्म का पालन करे और अगर उसको अपनी पहली वाली हालत मालूम हो कि क़लीला थी या कसीरा तो उसी के अनुसार काम कर सकती है।
मसअला 413. अगर मुस्तहाज़ा नमाज़ के बाद अपनी जांच करे और ख़ून ना देखे तो उसी वज़ू के साथ अपनी नमाज़ पढ़ सकती है चाहे कुछ देर बाद उसको दोबारा ख़ून आ जाए।
मसअला 414. अगर मुस्तहाज़ा औरत को मालूम हो कि नमाज़ का समय जाने से पहले वह पूरी तरह पवित्र हो जाएगी या जितना समय नमाज़ पढेगी ख़ून रुका रहेगा एहतियाते वाजिब यह है कि रुकी रहे और जब पवित्र हो जाए तो ग़ुस्ल या वज़ू करे और नमाज़ पढ़े।
मसअला 415. मुस्तहाज़ा औरत को ग़ुस्ल या वज़ू करने के तुरंत बाद नमाज़ पढ़ना चाहिए और आज़ान व अक़ामत और नमाज़ से पहले की दुवाओ को पढ़ सकती है, और जमाअत की भी प्रतीक्षा कर सकती है और नमाज़ में मुस्तहिब चीज़े जैसे क़ुनूत आदि को पढ़ सकती है।
मसअला 416. अगर ख़ून बह कर बाहर आ गया हो और औरत के लिए हानि ना हो तो ग़ुस्ल से पहले और ग़ुस्ल के बाद रूई या कपड़े से ख़ून को बाहर आने से रोके, लेकिन अगर ऐसा करने मे बहुत अधिक कठनाई हो तो ज़रूरी नही है।
मसअला 417. अगर ग़ुस्ल के समय ख़ून बन्द ना हो तो भी ग़ुस्ल सही है।
मसअला 418. मुस्तहाज़ा औरत को रमज़ान के महीने का रोज़ा रखना चाहिए और रोज़ा उस समय सही होगा जब वह रात मे ही नमाज़े मग़रिब व इशा की नमाज़ के लिए ग़ुस्ल करे जिसकी सुबह को रोज़ा रखना चाहेती है, और जिस दिन रोज़ रखे एहतियाते वाजिब यह है की उस दिन के ग़ुस्ल भी करे।
मसअला 419. अगर रोज़ेदार औरत नमाज़े ज़ोहर व अस्र के बाद मुस्तहाज़ा हो जाए तो उस दिन के रोज़ो के लिए ग़ुस्ल ज़रूरी नही है।
मसअला 420. अगर नमाज़ के बीच मे इस्तेहाज़ा क़लीला, कसीरा हो जाए तो नमाज़ को तोड़ कर ग़ुस्ल करे और फिर से नमाज़ पढ़े और अगर ग़ुस्ल के लिए समय नही है तो तयम्मुम करे, और अगर तयम्मुम के लिए भी समय नही है तो उस नमाज़ को पूरा करे और एहतियाते वाजिब के अनुसार उस नमाज़ को फिर से पढ़े (यानी क़ज़ा भी करे।)
मसअला 421. अगर इस्तेहाज़ा कसीरा, क़लीला हो जाए तो पहली नमाज़ के लिए ग़ुस्ल करे और उसके बाद की नमाज़ों के लिए वज़ू करे।
मसअला 422. मुस्तहाज़ा कसीरा अगर अपने दिन भर के ग़ुस्ल करले तो दूसरे कामों के लिए जैसे क़जा नमाज़, तवाफ़ नमाज़े आयात, नमाज़े शब के लिए उस पर दूसरा ग़ुस्ल वाजिब नही है बल्कि सिर्फ़ वज़ू कर लेना काफ़ी है।
मसअला 423. मुस्तहाज़ा औरत क़जा नमाज़ भी पढ़ सकती है लेकिन एहतियाते वाजिब के अनुसार हर नमाज़ के लिए वज़ू करना होगा लेकिन रोज़ाना की मुस्तहिब नामाज़ों के लिए वही नमाज़ वाला वज़ू काफ़ी है। इसी तरह पूरी नमाज़े शब के लिए एक वज़ू काफ़ी है, लेकिन शर्त यह है कि पूरी नमाज़े शब को लगातार पढ़े।
मसअला 424. औरत की रहम से जो भी ख़ून निकले अगर उस मे हैज़ व नेफ़ास की निशानियां ना पाई जाती हों और वह ख़ून कूंवार पन या चोट या ज़ख़्म का भी ना हो, तो वह ख़ून इस्तिहाज़ा है।
मसअल 425. अगर शक हो कि ख़ून ज़ख़्म का है या नही और उसकी ज़ाहेरी हालत सही हो तो वह इस्तेहाज़ा का ख़ून माना जाएगा, लेकिन अगर उसकी हालत में शक है कि ख़ून ज़ख़्म का है या किसी और चीज़ का तो फ़िर उसपर इस्तेहाज़ा के अहकाम लागू नही होंगे।