हुनूत के अहकाम 552-559

SiteTitle

صفحه کاربران ویژه - خروج
ورود کاربران ورود کاربران

LoginToSite

SecurityWord:

Username:

Password:

LoginComment LoginComment2 LoginComment3 .
SortBy
 
तौज़ीहुल मसाएल
कफ़न के अहकाम 541- 551मुर्दे की नमाज़ 560 -569
मसअला 552. ग़ुस्ल समाप्त होने के बाद मुर्दे को हुनूत करना वजिब है यानि सजदे के सातों स्थानोः माथा, दोनो हथेलियां, दोनो घुटने, दोनो पैरों के अंगूठे पर काफ़ूर का पाख़ानाना। और एहतियात यह है कि थोड़ थोड़ा काफ़ूर इन अंगों पर डाल दें। काफ़ूर को पवित्र, मुबाह, ताज़ा और ख़ुशबूदार होना चाहिए।
मसअला 553. एहतियात यह है कि पहले काफ़ूर मुर्दे के माथे पर पाख़ाना दें, उसके बाद दूसरे अंगों पर और यह कार्य कफ़न पहनाने से पहले या कफ़न पहनाते समय करलें। कफ़न पहनाने के बाद नही।
मसअला 554. अगर हज या उमरे का एहराम बांधे हुए कोई व्यक्ति मर जाए तो हुनूत और दूसरी ख़ुशबू (भी) उसके लिए जाएज़ नही है।
मसअला 555. जो औरत वफ़ात के इद्दे (पति के मरने के बाद का वह समय जिसमें वह किसी और से शादी नही कर सकती) में हो उसके लिए ख़ुशबू लगाना हराम है लेकिन अगर मर जाए तो हुनूत करना वाजिब है।
मसअला 556. एहतियात यह है कि मुर्दे को मुश्क (कस्तूरी) अम्बर (एक ख़ुशबूदार वस्तु) और दूसरे इत्रों से ख़ुशबू नही लगाएं, यहां तक कि हुनूत के लिए काफ़ूर के साथ किसी दूसरी ख़ुशबू को नही मिलाएं।
मसअला 557. अगर ग़ुस्ल और हुनूत दोनो के लिए संम्पूर्ण मात्रा में काफ़ूर नही हो तो एहतियातो वाजिब के अनुसार उसको ग़ुस्ल में प्रयोग करना चाहिए और अगर काफ़ून सातों अंगों के लिए पूरा नही पड़े तो पहले माथे पर रखें।
मसअला 558. काफ़ूर के साथ थोड़ी सी ख़ाके शिफ़ा को मिला देना बेहतर है लेकिन इतनी अधिक नही हो कि काफ़ूर, काफ़ूर ही नही रहे।
मसअला 559. दो हरी और ताज़ी लकड़ियों का मुर्दे के साथ क़ब्र में रखना मुसतहिब है चाहे कफ़न के अंदर हो या बाहर।
कफ़न के अहकाम 541- 551मुर्दे की नमाज़ 560 -569
12
13
14
15
16
17
18
19
20
Lotus
Mitra
Nazanin
Titr
Tahoma