मसअला 613. सात जगहों पर वज़ू का ग़ुस्ल के स्थान पर तयम्मुम करना चाहिएः
तयम्मुम की पहली जगह
जहां पर वज़ू या ग़ुस्ल के जितना पानी मिलना संभव नही हो।
मसअला 614. अगर इन्सान शहर या आबादी में हो और पानी नही मिले तो उसे इनती खोज करनी चाहिए की पानी मिलने से हताश हो जाए और अगर जंगल में हो और वह पहाड़ी या ऊबड़ खाबड़ इलाक़ा हो या वृक्षों आदि के कारण उसको पार करना कठिन हो तो चारों तरफ़ एक तीर फेंके जाने के बराबर (जैसे पुराने ज़माने में कमान से तीर फेके जाते थे) पानी की खोज करे
(अल्लामा मजलिसी ने मन ला यहज़ोरोहुल फ़क़ीह की शरह में एक तीर फेकने की मात्र दो सौ क़दम को बताया है और प्रत्यक्ष रूप से यह सही भी है क्योंकि सामान्यता एक तीर फेकने वाल इससे आगे नही फेक पाता है)
और अगर ज़मीन समतल हो और कोई रुकावट नही हो तो चारों तरफ़ दो तीर के फ़ासले के बराबर पानी तलाश करे। परन्तु जिस तरफ़ के लिए विश्वास हो कि उधर पानी नही है उस तरफ खोज करना भी आवश्यक नही है और अगर चारों तरफ़ में से कुछ तरफ़ ज़मीन ऊँची नीची और कुछ तरफ़ समतल हो तो हर तरफ़ उसके नियम अनुसार कार्य करे।
मसअला 615. अगर यह विश्वास हो कि निश्चित दूरी से अधिक दूरी पर पानी है और नमाज़ के लिए समय भी कम नही है तो अगर इसमें सामान्य से अधिक कठिनाई नही हो तो पानी की खोज में वहां तक जाना चाहिए, लेकिन अगर शक या संभावना हो कि निश्चित दूरी से अधिक दूरी पर पानी है तो खोज करना आवश्यक नही है।
मसअला 616. जिस व्यक्ति पर विश्वास हो दूसरा उसको पानी की खोज में भेज सकता है इसी प्रकार कई लोगों की तरफ़ से अगर एक व्यक्ति (जिस पर विश्वास हो) चला जाए तो काफ़ी है।
मसअला 617. अगर नमाज़ के समय से पहले पानी की खोज कर चुका है और पानी नही मिला है और वह नमाज़ के समय तक उसी स्थान पर रहे तो नमाज़ का समय आने के बाद दोबार खोज करना आवश्यक नही है, लेकिन अगर स्थान बदल गया हो तो दोबारा खोज करना चाहिए इसी प्रकार अगर एक नमाज़ के लिए पानी खोज चुका है तो जब तक स्थान नही बदले दूसरी नमाज़ों के लिए पानी को खोजना आवश्यक नही है।
मसअला 618. अगर नमाज़ के लिए समय कम हो और पानी की खोज में समय बीत जाता हो या कोई ख़तरा हो तो पानी की खोज आवश्यक नही है परन्तु अगर थोड़ी दूर तक खोज सकता है तो करे।
मसअला 619. अगर जानबूझ कर उस समय तक पानी की खोज नही करे जब तक नमाज़ का समय समाप्त नही होने लगे तो ऐसा व्यक्ति गुनाहगार है मगर तयम्मुम से उसकी नमाज़ सही है।
मसअला 620. जिसको पानी के नही मिलने का विश्वास हो इसीलिए पानी की खोज में नही जाए और तयम्मुम से नमाज़ पढ़ ले फिर नमाज़ के पढ़ने के बाद पता चले कि अगर पानी की खोज में जाता तो पानी मिल जाता, तो उसकी नमाज़ सही नही है, इसी प्रकार पानी की खोज के बाद तयम्मुम करके नमाज़ पढ़े और बाद में पता चले कि पानी वहां पर था तो एहतियाते वाजिब के अनुसार अगर अभी नमाज़ का समय बचा है तो दोबारा पढ़े और अगर समय समाप्त हो चुका है तो क़ज़ा करे।
मसअला 621. जो व्यक्ति वज़ू से हो और जानता हो कि अगर मेरा वज़ू टूट गया तो पानी नही मिलेगा तो फिर नमाज़ के समय तक बचा कर रखे, यहां तक कि अगर बहुत अधिक संभावना भी हो कि वज़ू के लिए पानी नही मिल पाएगा या नमाज़ के समय से पहले वज़ू से हो और जानता हो कि बाद में पानी नही मिलेगा तो एहतियाते वाजिब यह है कि अपने वज़ू के बचा कर रखे।
मसअला 622. अगर किसी के पास वज़ू या ग़ुस्ल करने जितना पानी हो और वह जानता हो कि अगर इस पानी को फेंक दिया तो दूसरा पानी नही मिलेगा तो अगर नमाज़ का समय आ चुका हो तो उस पानी का बहाना हराम है और एहतियाते वाजिब है कि नमाज़ के समय के आने से पहले भी पानी को नही बहाए। इसी प्रकार अगर संभावना हो कि इस पानी के समाप्त हो जाने के बाद दूसरा पानी नही मिलेगा तो एहतियाते वाजिब है कि उस पानी को बचा कर रखे, और इन सारी अवस्थाओं में अगर पानी को फेंक दिया तो ग़लत कार्य किया है लेकिन तयम्मुम के साथ उसकी नमाज़ सही है।