मसअला 360. इन्सान दो चीज़ो से मुजनिब होता है।
• जिमाअ (संभोग)
• वीर्य का निकलना, चाहे सोते में निकले या जागते में, कम मात्र मे निकले या अधिक, काम वेग के साथ हो या बिना काम वेग के।
मसअला 361. अगर इन्सान से कोई पदार्थ निकलता है और पता न चले कि यह वीर्य है या कोई और चीज़, तो अगर काम वेग के साथ उछल कर निकले तो वीर्य है और अगर यह दोनो या इन दोनो में से कोई एक भी लक्षण नही हैं तो वीर्य नही है। परन्तु बीमार के लिए आवश्यक नही है कि उछल कर बाहर आए बल्कि अगर कोई पदार्थ इस प्रकार निकले कि काम वेग अपनी चर्म सीमा पर हो तो वह वीर्य का हुक्म रखती है।
मसअला 362. वीर्य निकलने के बाद सामान्यता बदन सुस्त हो जाता है लेकिन यह पक्की निशानियों और शर्तो का अंग नही है।
मसअला 363. वीर्य निकलने के बाद पेशाब करना मुसहतिब है, ताकि वीर्य के बची हुई बूंदे निकल जाएं और अगर कोई पेशाब न करे और ग़ुस्ल के बाद को पदार्थ निकल आए जिसके बारे में पता न हो कि वीर्य है या कोई दूसरी चीज़ तो वह वीर्य के हुक्म में होगी। और उसको दोबारा ग़ुस्ल करना चाहिए।
मसअला 364. अगर इन्सान संभोग करे और लिग का अगला भाग (शिशन मुख) या उससे अधिक अंदर चला जाए तो मर्द और औरत दोनो मुजनिब हो जाते हैं चाहे बालिग़ हों या न हों। वीर्य निकले या न निकले, लेकिन यह उस समय होगा कि जब पेशाब के स्थान से अंदर जाए और अगर पाख़ाने के स्थान से हुआ है तो एहतियाते वाजिब के अनुसार ग़ुस्ल और वज़ू दोने करना चाहिए।
मसअला 365. अगर शक हो कि शिशन मुख प्रविष्ट हुआ है कि नही तो उस पर ग़ुस्ल वाजिब नही है।
मसअला 366. अगर कोई (ख़ुदा की पनाह) किसी जानवर से अपृकर्तिक कार्य करे और वीर्य बाहर आ जाए तो वह मुजनिब हो जाते है और उसके लिए ग़ुस्ल आवश्यक है, लेकिन अगर वीर्य न निकले तो एहतियाते वाजिब के अनुसार वाजिब नमाज़ और इस प्रकार की दूसरी चीज़ों के लिए ग़ुस्ल और वज़ू दोनो करे। परन्तु अगर इस कार्य से पहले वज़ू किए हुए था तो केवल ग़ुस्ल ही काफ़ी है।
मसअला 367. अगर वीर्य अपने स्थान से चल दे लेकिन उसको बाहर निकलने से रोक दे या किसी कारणवश बाहर न निकल सके तो ग़ुस्ल वाज़िब नही है. इसी प्रकार अगर शक हो कि वीर्य बाहर निकली है कि नही तब भी ग़ुस्ल वाजिब नही है।
मसअला 368. जिसके पास ग़ुस्ल करने के लिए पानी नही हो वह इसके बावजूद अपनी बीवी से संभोग कर सकता है और उसके लिए तयम्मुम काफ़ी है। चाहे नमाज़ के समय से पहले हो या बाद में।
मसअला 369. अगर अपने कपड़े में कोई वीर्य देखे और विश्वास हो जाए यह उसी की वीर्य है तो ग़ुस्ल करे और जिन नमाज़ो के बारे में विश्वास हो कि जनाबत की अवस्था में पड़ी हैं उस को दोबारा पढ़े, लेकिन जिन नमाज़ो के बारे में शक हो उन की क़ज़ा (दोबारा पढ़ना) आवश्यक नही है।