71. पैग़म्बरो व आइम्मा की क़ब्रों की ज़ियारत

SiteTitle

صفحه کاربران ویژه - خروج
ورود کاربران ورود کاربران

LoginToSite

SecurityWord:

Username:

Password:

LoginComment LoginComment2 LoginComment3 .
SortBy
 
हमारे(शियों के)अक़ीदे
70. ख़ाक पर सजदह करना72. अज़ादारी और इसका फ़लसफ़ा
71पैग़म्बरो व आइम्मा की क़ब्रों की ज़ियारत
हमारा अक़ीदह है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) व आइम्मा-ए-मासूमीन अलैहिम अस्सलाम, बुज़ुर्ग उलमा व अल्लाह की राह में शहीद होने वाले अफ़राद की क़ब्रों की ज़ियारत मुसतहब्बाते मुअक्किदा में से है।
अहले सुन्नत के उलमा की किताबों में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की क़ब्रे मुबारक की ज़ियारत से मताल्लिक़ बहुतसी रिवायतें मौजूद हैं। इसी तरह शिया उलमा की किताबों में भी इस तरह की बहुत सी रिवायतें मौजूद है।[19] अगर इन तमाम रिवायतों को जमा किया जाये तो इस मोज़ू पर एक बड़ी किताब वुजूद में आ जायेगी।
दर तूले तारीख़ आलमे इस्लाम के बुज़ुर्ग उलमा और तमाम तबक़ात के लोगों ने इस काम को अहमियत दी है। और जो लोग पैग़म्बरे इस्लाम(स.) व दिगर बुज़ुर्गों की कब्रो की ज़ियारत के लिए गये हैं उनकी ज़िन्दगी के हालात से किताबे भरी पड़ी हैं। कुल्ली तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह मसला तमाम मुसलमानों का मोरिदे इत्तेफ़ाक़ मसला है।
यहाँ पर यह बात क़ाबिले ग़ौर है कि ज़ियारत को इबादत नही समझना चाहिए। क्योँ कि इबादत सिर्फ़ अल्लाह की ज़ात से मख़सूस है। और ज़ियारत का मतलब बुज़ुर्गाने इस्लाम का एहतेराम और अल्लाह की बारगाह में उन से शफ़ाअत तलब करना है।रिवायात में यहाँ तक आया है कि कभी कभी पैग़म्बरे इस्लाम(स.) ख़ुद अहले क़ुबूर की ज़ियारत को जाते थे और जन्नतुल बक़ी मे पहुँच कर उन को सलाम करते थे और उन पर दरूद पढ़ते थे।[20]
इस बिना पर कोई भी इस अमल को इस्लामी फ़िक़ह की नज़र से रद्द कर के ग़ैरे मशरूअ क़रार नही दे सकता।
70. ख़ाक पर सजदह करना72. अज़ादारी और इसका फ़लसफ़ा
12
13
14
15
16
17
18
19
20
Lotus
Mitra
Nazanin
Titr
Tahoma