40. सिरात व मिज़ान

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हमारे(शियों के)अक़ीदे
39. क़ियामत में शुहूद व गवाह41. क़ियामत और शफ़ाअत
40सिरात व मिज़ान
हम क़ियामत में “सिरात”व “मिज़ान” के वुजूद के क़ाइल हैं। सिरात वह पुल है जो जहन्नम के ऊपर बनाया गया है और सब लोग उस के ऊपर से उबूर करें गे। हाँ जन्नत का रास्ता जहन्नम के ऊपर से ही है। “व इन मिन कुम इल्ला वारिदुहा काना अला रब्बिका हतमन मक़ज़ियन *सुम्मा नुनज्जि अल्लज़ीना इत्तक़व व नज़रु अज़्ज़लिमीना फ़ीहा जिसिय्यन ”[106]यानी और तुम सब (बदूने इस्तसना)जहन्नम में दाख़िल हों गे यह तुम्हारे रब का हतमी फ़ैसला है। इस के बाद हम मुत्तक़ी अफ़राद को निजात दे दें गे और ज़ालेमीन को जहन्नम में ही छोड़ दें गे।।
इस ख़तरनाक पुल से गुज़रना इंसान के आमाल पर मुनहसिर है, जैसा कि हदीस में बयान हुआ है “मिन हु मन यमुर्रु मिसला अलबर्क़ि, मिन हुम मन यमुर्रु मिस्ला अदवि अलफ़रसि, व मिन हुम मन यमुर्रु हबवन,व मिन हुम मन यमुर्रु मशयन,व मिन हुम मन यमुर्रु मुताअल्लिक़न ,क़द ताख़ुज़ु अन्नारु मिनहु शैयन व ततरुकु शैयन।”[107]यानी कुछ लोग पुले सिरात से बिजली की तेज़ी से गुज़र जायें गे, कुछ तेज़ रफ़्तार घोड़े की तरह, कुछ घुटनियों के बल, कुछ पैदल चलने वालों की तरह, कुछ लोग इस पर लटक कर गुज़रें गे,आतिशे दोज़ख़ उन में से कुछ को ले लेगी और कुछ को छोड़ दे गी।
“मीज़ान” इसके तो नाम से ही इस के मअना ज़ाहिर है।यह इंसानों के आमाल को परख ने का एक वसीला है। हाँ उस दिन हमारे तमाम आमाल को तौला जाये गा और हर एक के वज़न व अरज़िश को आशकार किया जाये गा। “व नज़उ मवाज़ीना अलक़िस्ता लियौमि अलक़ियामति फ़ला तुज़लमु नफ़्सा शैयन व इन काना मिस्क़ाला हब्बतिन मिन ख़रदलिन आतैना बिहा व कफ़ा बिना हासिबीना।”[108]यानी हम रोज़े क़ियामत इंसाफ़ की तराज़ू क़ाइम करें गे और किसी पर मामूली सा ज़ुल्म भी नही होगा,यहाँ तक कि अगर राई के एक दाने के वज़न के बराबर भी किसी की (नेकी या बदी) हुई तो हम उस को भी हाज़िर करें गे और (उस को उस का बदला दें गे)और काफ़ी है कि हम हिसाब करने वाले हों गे।
“फ़अम्मा मन सक़ुलत मवाज़ीनहु फ़हुवा फ़ी ईशातिन राज़ियतिन *व अम्मा मन ख़फ़्फ़त मवाज़ीनहु फ़उम्मुहु हावियतिन ”[109] यानी (उस दिन) जिस के आमाल का पलड़ा वज़नी होगा वह पसंदीदा ज़िन्दगी में होगा और जिस के आमाल का पलड़ा हल्का होगा उस का ठिकाना दोज़ख में होगा।
हाँ हमारा अक़ीदह यही है कि उस जहान में निजात व कामयाबी इंसान के आमाल पर मुन्हसिर हैं,न कि उसकी आरज़ुओं व तसव्वुरात पर। हर इँसान अपने आमाल के तहत गिरवी है और तक़वे व परेहज़गारी के बिना कोई भी किसी मक़ाम पर नही पहुँच सकता। “कुल्लु नफ़्सिन बिमा कसबत रहिनतुन”[110] यानी हर नफ़्स अपने आमाल में गिरवी है।
यह सिरात व मीज़ान के बारे में मुख़्तसर सी शरह(व्याख्या) थी,जबकि इन के जुजयात के बारे में हमें इल्म नही है। जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं कि आख़ेरत एक ऐसा जहान है जो इस दुनिया से जिस में हम ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं बहुत बरतर है। इस माद्दी दुनिया में क़ैद अफ़राद के लिए उस जहान के मफ़हूमों को समझना मुश्किल व ग़ैर मुमकिन है।
39. क़ियामत में शुहूद व गवाह41. क़ियामत और शफ़ाअत
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