70. ख़ाक पर सजदह करना

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हमारे(शियों के)अक़ीदे
69. नमाज़ को जमा करना71. पैग़म्बरो व आइम्मा की क़ब्रों की ज़ियारत
70ख़ाक पर सजदह करना
हमारा अक़ीदह है कि नमाज़ में या तो ख़ाक पर सजदह किया जाये या फिर ज़मीन के अजज़ा में से किसी पर भी, या उन चीज़ों पर जो ज़मीन से पैदा होती हैं जैसे दरख़्तों के पत्ते लकड़ी व घास फ़ूँस बग़ैरह (उन चीज़ों को छोड़ कर जो खाने या पहन ने में काम आती हैं)
इसी वजह से हम सूती फ़र्श पर सजदह करने को जायज़ नही मानते और ख़ाक पर सजदह करने को दूसरी तमाम चीज़ों पर तरजीह देते हैं। आसानी के लिए अक्सर शिया पाक मिट्टी को गोल या चकोर शक्ल में ढाल लेते है और इसे अपने पास रखते है और नमाज़ पढ़ते वक़्त इसी पर सजदह करते हैं। यह गोल या चकोर शक्ल में ढाली गई मिट्टी सजदहगाह कहलाती हैं।
इस अमल की दलील के लिए हमारे पास पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की हदीस मौजूद है जिस में आपने फ़रमाया कि “जुइलत ली अलअर्ज़ु मस्जिदन व तहूरन”[18] यानी मेरे लिए ज़मीन को मस्जिद व तहूर क़रार दिया गया।
हम इस हदीस में मस्जिद से सजदेह की जगह मुराद लेते हैं। यह हदीस अक्सर कुतुबे सहा में मौजूद है।
मुमकिन है कि यह कहा जाये कि इस हदीस में मस्जिद से मुराद सजदेह की जगह नही है बल्कि नमाज़ की जगह है। उस के मुक़ाबिल में जो नमाज़ को किसी मुऐय्यन जगह पर पढ़ता हो ,लेकिन इस बात पर तवज्जोह देने से कि यहाँ पर तहूर भी इस्तेमाल हुआ है तहूर यानी ख़ाके तय्म्मुम, यह बात वाज़ेह हो जाती है कि यहाँ पर मस्जिद से मुराद सजदेह की जगह ही है न कि नमाज़ की जगह। यानी ज़मीन की ख़ाक तहूर भी है और सजदेह की जगह भी। इसके अलावा आइम्मा-ए-मासूमीन अलैहिम अस्सलाम की बहुत सी ऐसी हदीसें हैं जो सजदेह के लिए ख़ाक, संग और इन्हीं के मानिन्द दूसरी चीज़ो के बारे में राहनुमाई करती हैं।
69. नमाज़ को जमा करना71. पैग़म्बरो व आइम्मा की क़ब्रों की ज़ियारत
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