35. मआद की दलीलें रौशन हैं।

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हमारे(शियों के)अक़ीदे
34. मआद (क़ियामत)के बग़ैर ज़िन्दगी बेमफ़हूम है।36. मआदे जिस्मानी
35मआद की दलीलें रौशन हैं।
हमारा अक़ीदह है कि मआद की दलीलें बहुत रौशन हैं क्यों कि-
क)इस दुनिया की ज़िन्दगी इस बात की तरफ़ इशारा करती है कि ऐसा नही हो सकता कि यह दुनिया जिस में इंसान चन्द दिनों के लिए आता है, मुश्किलात के एक बहुत बड़े अम्बोह के दरमियान ज़िन्दगी बसर करता है और मर जाता है, इंसान की ख़िलक़त का आख़री हदफ़ हो,“अफ़ाहसिब तुम अन्ना मा ख़लक़ना कुम अबसन व अन्ना कुम इलैनाला तुरजाऊना ”[92]यानी क्या तुम यह गुमान करते हो कि हम ने तुम्हें किसी मक़सद के बग़ैर पैदा किया और तुम हमारे पास पलट कर नही आओ गे। यह इस बात की तरफ़ इशारा है कि अगर मआद का वुजूद न हो तो इस दुनिया की ज़िन्दगी बे मक़सद है।
ख)अल्लाह का अद्ल इस बात का तक़ाज़ा करता है कि नेक और बद लोग जो दुनिया में एक ही सफ़ में रहते हैं बल्कि अक्सर बदकार आगे निकल जाते हैं वह आपस में अलग हों और हर कोई अपने अपने आमाल की जज़ा या सज़ा पायें। “अम हसिबा अल्लज़ीना इजतरहू अस्सयिआति अन नजअला हुम कल्लज़ीना आमनु व अमलू अस्सालिहाति सवाअन महयाहुम व ममातु हुम साआ मा यहकुमूना ”[93] क्या बुराई इख़्तियार करने वालों ने यह ख़याल कर लिया है कि हम उन्हे ईमान लाने वालों और नेक अमल करने वालों के बराबर क़रार दें गे,कि सब की मौत व हयात एक जैसी हो,यह उन्होंने बहुत बुरा फ़ैसला किया है।
ग)अल्लाह की कभी ख़त्म न होने वाली रहमत इस बात का तक़ाज़ा करती है कि उसका फ़ैज़ और नेअमतें इंसान के मरने के बाद भी कतअ न हों बल्कि इस्तेदाद रखने वाले अफ़राद का तकामुल उसी तरह होता रहे। “कतबा अला नफ़सिहि अर्रहमता लयजमअन्ना कुम इला यौमिल क़ियामति लारौबा फ़ीहि ”[94] यानी अल्लाह ने अपने ऊपर रहमत को लाज़िम क़रार दे लिया है,वह तुम सब को क़ियामत के दिन इकठ्ठा करेगा जिस में शक की कोई गुँजाइश नही है।
जो अफ़राद मआद के बारे में शक करते हैं क़ुरआने करीम उन से कहता है कि कैसे मुमकिन है कि तुम मुर्दों को ज़िन्दा करने के सिलसिले में अल्लाह की क़ुदरत में शक करते हो। जबकि तुम को पहली बार भी उस ने ही पैदा किया है,बस जिस ने तुम्हें इब्तदा में ख़ाक से पैदा किया है वही तुम्हे दूसरी ज़िन्दगी भी अता करेगा। “अफ़ाअयियना बिलख़ल्क़ि अलअव्वलि ,बल हु फ़ी लबसिन मिन ख़ल्क़िन जदीदिन”[95] यानी क्या हम पहली ख़िल्क़त से आजिज़ थे( कि क़ियामत की ख़िल्क़त पर क़ादिर न हों)हर गिज़ नही, लेकिन वह (इन रौशन दलाइल के बावुजूद)नई ख़िल्क़त की तरफ़ से शुब्हे में पड़े हुए हैं। “व ज़रबा लना मसलन व नसिया ख़ल्क़हु क़ाला मन युहयु अलइज़ामा व हिया रमीम* क़ुल युहयिहा अल्लज़ी अव्वला मर्रतिन व हुवा बिक़ुल्लि ख़व्क़िन अलीम”[96]वह हमारे सामने मिसालें पेश करता है,अपनी ख़िल्क़त को भूल गया,कहता है कि इन बोसीदह हड्डियों को कौन ज़िन्दा करेगा ,आप कह दिजीये इन को वही ज़िन्दा करेगा जिस ने इन्हें पहली मर्तबा ख़ल्क़ किया था और वह हर मख़लूक़ का बेहतर जान ने वाला है।
और इसके साथ साथ यह भी कि ज़मीनों आसमान की ख़िल्क़त ज़्यादा अहम है या इनसान का पैदा करना !बस जो इस वसूअ जहान को इसकी तमाम शगुफ़्तगी के साथ ख़ल्क़ करने पर क़ादिर है वह इंसान को मरने के बाद दुबारा ज़िन्दा करने पर भी क़ादिर है। “अवा लम यरव अन्ना अल्लाहा अल्लज़ी ख़लक़ा अस्स,मावाति व अल अर्ज़ा व लम यअया बिख़ल्क़ि हिन्ना बिक़ादिरिन अला अन युहयि अलमौता बला इन्नहु अला कुल्लि शैइन क़दीर”[97]यानी क्या वह नही जानते कि अल्लाह ने ज़मीन व आसमान को पैदा किया और वह उन को ख़ल्क़ करने में आजिज़ नही था,बस वह मुर्दों को ज़िन्दा करने पर भी क़ादिर है बल्कि वह तो हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
34. मआद (क़ियामत)के बग़ैर ज़िन्दगी बेमफ़हूम है।36. मआदे जिस्मानी
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