7)हमारा अक़ीदह है कि अस्ले तौहीदे अफ़आली इस हक़ीक़त की ताकीद करती है
कि अल्लाह के पैग़म्बरों ने जो मोजज़ात दिखाए हैं वह अल्लाह के हुक्म से थे, क्योँ कि क़ुरआने करीम हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में फ़रमाता है कि “व तुबरिउ अलअकमहा व अलअबरसा बिइज़नि व इज़ तुख़रिजु अलमौता बिइज़नि ”[25] यानी तुम ने मादर ज़ाद अँधों और ला इलाज कोढ़ियों को मेरे हुक्म से सेहत दी!और मुर्दों को मेरे हुक्म से ज़िन्दा किया।
और जनाबे सुलेमान अलैहिस्सलाम के एक वज़ीर के बारे में फ़रमाया कि “क़ाला अल्लज़ी इन्दहु इल्मुन मिन अलकिताबि अना आतिका बिहि क़बला अन यरतद्दा इलैका तरफ़ुका फ़लम्मा रआहु मुस्तक़िर्रन इन्दहु क़ाला हाज़ा मिन फ़ज़लि रब्बि” यानी जिस के पास (आसमानी )किताब का थोड़ा सा इल्म था उसने कहा कि इस से पहले कि आप की पलक झपके मैं उसे (तख़्ते बिलक़ीस)आप के पास ले आउँगा,जब हज़रत सुलेमान ने उसको अपने पास ख़ड़ा पाया तो कहा यह मेरे परवरदिगार के फ़ज़्ल से है।
इस बिना पर जनाबे ईसा की तरफ़ अल्लाह के हुक्म से लाइलाज बीमारों को शिफ़ा (सेहत) देने और मुर्दों को ज़िन्दा करने की निसबत देना, जिसको क़ुरआने करीम ने सराहत के साथ बयान किया है ऐने तौहीद है।